चुनौतियाँ तो हर जगह हर कार्य में कुछ ना कुछ होती हैं
हमें इस अहंकार में नहीं रहना चाहिए की हम प्रकृति को बचा रहे हैं, या बचा लेंगे।
नर्मदा समग्र न्यास के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कार्तिक सप्रे से गुरबीर सिंघ चावला की विशेष बातचीत
कार्तिक सप्रे
मुख्य कार्यकारी, नर्मदा समग्र न्यास
भोपाल, मध्य प्रदेश
आपकी प्रारंभिक शिक्षा कहाँ हुई और शैक्षणिक क्षेत्र में अपनी विभिन्न योग्यताओं के बारे में कृपया बताएं?
मैंने मध्य प्रदेश के इंदौर से शिक्षा प्राप्त की। मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है और एमबीए (ऑपरेशंस मैनेजमेंट) के बाद अब आईआईटी दिल्ली से पीएचडी कर रहा हूँ।
अपनी शैक्षणिक उपलब्धियों के बाद किन संस्थानों में आपने अपनी सेवाएं दी और आपके क्या दायित्व थे?
शुरुवात से ही सेना में जाने का मन रहा। भारतीय सेना के तीनों अंगों के एस.एस.बी. में सम्मिलित हो चुका हूँ, PABT भी क्वालिफाई किया था। इस दौरान वर्ष भर में एक कोचिंग संस्थान और इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाने और समन्वय का काम किया जिससे स्वयं के दैनिक और एस.एस.बी. में आने जाने के व्यय स्वयं वहन कर सका। उसके बाद क़रीब डेढ़ वर्षों तक एक बड़ी इंटीग्रेटेड स्टील और पॉवर कंपनी में उसके प्रोजेक्ट स्टेज से, उसके इरेक्शन-कमिशनिंग तक और बाद में कुछ समय मेंटेनेंस विभाग में कार्य किया। फिर स्व. अनिल माधव दवे जी के साथ संसद में उनके निजी सहायक के रूप में रहा। साथ ही नर्मदा समग्र में कार्यकर्ता के रूप में समय देता रहा। बाद में उन्हीं के साथ केंद्रीय मंत्रालय में उनके सहायक निजी सचिव के पद पर रहा। अब नर्मदा समग्र का पूर्णकालिक रूप से कार्य देख रहा हूँ। साथ ही कुछ सामाजिक संगठनों/संस्थाओं, राज्य एवं केंद्र शासन की समितियों में सदस्य हूँ।
अनिल माधव दवे जी के साथ आपका परिचय कैसे हुआ था। कितने वर्षों तक उनके साथ काम करने का अवसर मिला। उनके व्यक्तित्व की क्या विशेषताएँ थीं?
अनिल दवे जी जब इंदौर में प्रचारक रहे तब उनका हमारे यहाँ आना होता था, तब में काफी छोटा था। काफी वर्षों बाद जब में कॉलेज का विद्यार्थी था तब एक या दो कार्यक्रमों में उनसे संक्षिप्त भेंट हुई थी। बाद में उन्होंने संपर्क किया तब में स्टील प्लांट में काम कर रहा था, उस दौरान मिलना हुआ और उसके कुछ महीनों बाद नियति में निहित था और मुझे उनके साथ कम करने का अवसर मिला। ७ वर्षों तक उनका सानिध्य, स्नेह और मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा। वह चिंतक-विचारक, दूरदृष्टा थे, वह काफी सरल-सहज स्वभाग के व्यक्ति थे। अनिल माधव दवे जी “बिरला व्यक्ति-निराला व्यक्तित्व”।
आप नर्मदा समग्र न्यास से कब से जुड़े हैं। इस न्यास का विज़न और मिशन क्या है?
वैसे तो अनिल दवे जी के साथ कार्य करना आरंभ किया उसी वर्ष से मेरा कार्यकर्ता के रूप में नर्मदा समग्र में जुड़ाव हुआ। नर्मदा समग्र के कार्यों/गतिविधियों और उसके उद्देश्यों से में काफ़ी प्रभावित हुआ और वर्तमान में यहीं पूरी तरह से काम कर रहा हूँ। नर्मदा समग्र नदी को एक जीवित इकाई के रूप में देखता है। नर्मदा जी में जल बढ़े और प्रदूषण घटे, इन दो विषयों पर केंद्रित ही अधिकतर गतिविधियां हैं, जिसमें समाज की महती भूमिका है। नर्मदा जी के विभिन्न पहलुओं, पक्षों और अंगों को समग्र रूप से देखना, समझना और उन पर तदनुसार कार्य करने का प्रयास है नर्मदा समग्र। नर्मदा जी का जल, उसके जंगल, उसके खेत, उसके किनारे बसी सभ्यता-समाज-संस्कृति, आजीविका, जैव-विविधता, इत्यादि सारे विषय जो उसके जलग्रहण में आते हैं, वह स्वस्थ रहे ताकि एक पूरा नदी तंत्र स्वस्थ रह सके इस पर हमारे कार्य केंद्रित हैं।
आप वर्तमान में नर्मदा समग्र न्यास के सीईओ हैं। क्या चुनौतियां हैं आपके सामने?
यह अपने तरह का कार्य है और ईश्वरीय कार्य जैसा है। चुनौतियाँ तो हर जगह हर कार्य में कुछ ना कुछ होती हैं। जैसा मैंने कहाँ यह एक ईश्वरीय कार्य है तो मेरा यह मानना है कि नर्मदा जी हमारी चिंता कर रही है और जब वह चिंता कर रही है तो हमें सिर्फ अपने प्रयासों पर केंद्रित रहना चाहिए और अपना कार्य करना चाहिए, शेष सब वह देख रही है और बेड़ा पार भी वही लगाएगी। अनिल दवे जी हमेशा कहते थे कि नर्मदा जी के जीवनकाल में या इस चक्र में हम मात्र 50-60-70 साल के लिए हैं, वह तो करोड़ों वर्षों से बह रही है और आगे भी निरंतर यूँ ही बहती रहेगी। हम उनको क्या बचाएँगे, हमारी आयु ही कितनी है!, हमारी क्षमता ही कितनी है!, हमें इस अहंकार में नहीं रहना चाहिए की हम प्रकृति को बचा रहे हैं, या बचा लेंगे। हमें तो बस अपनी और से जो अच्छा बन पड़े वह करना चाहिए, उनकी सेवा करना चाहिए, हम सेवा ही कर सकते हैं।
नर्मदा समग्र न्यास की अब तक की उपलब्धियों के बारे में
कृपया बताएं?
देश में नदियों का संरक्षण वि संवर्धन आम लोगों का विषय बना।
नर्मदा समग्र के प्रयासों से नदी जलग्रहण में वृक्षारोपण की अवधारणा जन-जन तक पहुँची, चुनरी चढ़ाने के स्थान पर हरियाली चुनरी बुनने का भाव विकसित हुआ।
नदी में मूर्ति विशार्जन के स्थान पर कुंड बनाकर मूर्ति विसर्जन की परंपरा शुरू की। पी.ओ.पी. एवं विषैले रसायन के स्थान पर स्व-निर्मित मिट्टी की मूर्ति बनाने और प्राकृतिक रंगों के उपयोग के लिए प्रशिक्षण कार्यशालाएँ आयोजित की गई जिसे लोगों द्वारा सराहा गाया और अब बड़े स्तर पर एक मुहिम के रूप के देखा जा सकता है।
2008 से नर्मदा समग्र ने नदी को उद्गम से संगम तक एक जीवमान इकाई मनाने और उसके अधिकार सुनिश्चित करने का विचार दिया, जिसर समाज और सरकार के स्तर पर भी मान्यता मिली।
नर्मदा के उद्गम से संगम तक उसके स्वास्थ्य का नियमित परीक्षण, और उनके प्रकाशन कि पहल की। भारत सरकार को “नदी आयुर्विज्ञान संस्थान” बनाने के लिए परिकल्पना भी प्रस्तुत की।
नर्मदा के तटवर्ती क्षेत्र में कुछ ऐसे स्थान भी हैं जहां लोगों को आज भी बुनियादी स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध नहीं। इस समस्या के समाधान के लिए एक नवाचार के रूप में देश की प्रथम “नदी एम्बुलेंस” का संचालन 2011 से आरंभ किया।
देश में अपनी नदी या जल नीति की कमी को ध्यान में रखकर, नदी महोत्सव 2013 में नदी नीति के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण बिंदुओं को शामिल कर बांद्राभान दृष्टि पत्र का प्रकाशन किया गया। जिसे केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय जल नीति बनाने के लिए चल रही प्रक्रिया में स्वीकार किया गया।
नदी महोत्सव 2015 में म.प्र. की 310 नदियों का प्रतिनिधित्व रहा। इस महोत्सव का मूल विषय था “नदी जलग्रहण क्षेत्र – रसायन एवं समस्याएँ”, जिसमें नदियों के जलग्रहण में रसायनों के उपयोग इव प्रभावों को कम करने के लिए चर्चा हुई। साथ ही नर्मदा जलग्रहण में प्राकृतिक कृषि करने वाले कृषकों तथा उपभोक्ताओं के बीच एक कड़ी का निर्माण (“मैकल नैचुरल फाउंडेशन” के माध्यम से) किया गया।
तदोपरांत कई हज़ार कृषकों को शून्य बजट प्राकृतिक कृषि का प्रशिक्षण भी कराया गया। जो सामाजिक संस्थाओं और कृषि विभाग के साथ मिलकर आयोजित किया गया।
कुछ समय पूर्व इस प्रकार के विभिन्न प्रयासों और प्रयत्नों के स्वरूप म.प्र. राज्य शासन ने नर्मदा जी के दोनोंओर 5 किमी तक के क्षेत्र में प्राथमिकता पर प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने का और कृषकों के प्रशिक्षण, क्षमता वर्धन और सहयोग हेतु एक नया कार्यक्रम भी आरंभ किया है।
मध्य प्रदेश विधान सभा परिसर में राज्य सरकार के साथ दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चिंता के समाधान के लिए देशभर की संस्थाओं, संगठनों, विद्वत्जनों, धर्मगुरुओं व विशेषज्ञों को एक मंच पर एकत्रित कर भारतीय जीवन दर्शन में उपलब्ध पर्यावरण चिंतन और उसकी वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता पर व्यापक मंधन और चर्चा हुई।
इसी कड़ी में उज्जैन सिंहस्थ के दौरान अंतर्राष्ट्रीय वैचारिक महाकुंभ के आयोजन में नर्मदा समग्र की महती भूमिका रही। वैचारिक महाकुंभ में संपूर्ण मानव जीवन के लिए प्रासंगिक मार्गदर्शी सिद्धांतों को “सिंहस्थ 2016 के सार्वभौम अमृत संदेश” के रूप में जन-जन तक पहुँचाया।
कोविड के दौरान भी नर्मदा समग्र के कार्यकर्ता ज़रूरतमंदों की सेवा में तत्पर रहे और सक्रिय रूप से सहयोग किया। 100 से अधिक परिक्रमावासियों को उनके घर तक सकुशल पहुँचने में मदद की। स्थानीय प्रशासन का समय-समय पर सहयोग किया। वनवासी दुर्गम क्षेत्र में खाद्य सामग्री पहुँचायी। वैक्सिनेशन के दौरान स्थानीय प्रशासन को नदी एम्बुलेंस के मद्यम से सहयोग किया।
स्व. अनिल जी द्वारा नर्मदा और सहायक नदियों पर होने वाले कार्यों पर केंद्रित तथा पर्यावरण चेतना के लिये संस्था के मुखपत्र के रूप में “नर्मदा समग्र” पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया गया था, जिसके जनवरी-मार्च 2023 के अंक “नीर, नदी और नारी” पर केंद्रित रहा। इस अंक के लिये हमें माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का वृहद संदेश प्राप्त हुआ है, जो आपके और हम सब के इस दिशा में किये गये कार्यों को रेखांकित करता है। साथ ही प्रधान मंत्री जी द्वारा ‘नारी नेतृत्व में विकास’ का मंत्र दिया है।
नदी, जल, जंगल, प्राकृतिक कृषि, नदी किनारे का समाज एवं संस्कृति इत्यादि जैसे विषयों को लेकर अपने तरह का पहला सामुदायिक रेडियो स्टेशन – रेवा रेडियो 90.8 एफएम, जबलपुर में आरंभ हुआ।
नर्मदा समग्र के माध्यम परिक्रमा कार्य एवं सहयोग हेतु संस्था के 2 प्रमुख दायित्ववन कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया गया।
‘नजर निहाल आश्रम’ में ‘द्वादश ज्योतिर्लिंग की राष्ट्र धर्म पद यात्रा’ के समापन अवसर पर 21 जनवरी 2021 को ओमकारेश्वर में आयोजित कार्यक्रम के दौरान समस्त अखाड़ों के महामंडलेश्वर की उपस्थिति में नर्मदा जी के संरक्षण-संवर्धन पर नर्मदा समग्र द्वारा किए जा रहे कार्यों व प्रयासों हेतु सम्मानित किया गया।
निमाड़ अभ्युदय संस्थान द्वारा भी नर्मदा जी के जलग्रहण में किए जा रहे सामाजिक कार्यों के लिए संस्था को सम्मानित किया गया।
मध्य प्रदेश शासन द्वारा पर्यावरण इव जलसंरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट/असाधारण कार्य हेतु “मध्य प्रदेश गौरव सम्मान 2022” से सम्मानित किया गया।
देश पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन के प्रति लोगो में कितनी जागरूकता आप देखते हैं। देशवासियों से क्या कहना चाहेंगे?
जिसमें प्राकृतिक जीवनशैली उसके मूल में रही हो, ऐसे में यह कहना लोग पहले कुछ नहीं करते थे और अब करने लगे हैं, यह शायद उचित नहीं होगा। हाँ पर यह ज़रूर है की कुछ दशकों तक सामान्य व्यक्ति में जो एक प्रकृति के प्रति चेतना थी वह कम देखने में आयी। व्यक्तिगत, आर्थिक, या व्यावसायिक या केवल लाभ को देखने की प्रवृत्ति बढ़ी। जो समाज हित, सामूहिकता वाला भाव था वह थोड़ा कम हुआ। परंतु पिछले कुछ वर्षों में जागरूकता में वृद्धि हुई है। विशेष करके स्वच्छ भारत अभियान और शौचालय का जो महत्वपूर्ण विषय हमारे देश के प्रधान सेवक जी ने प्राथमिकता पर लेकर जो प्रयत्न और प्रयास किए, उससे आज काफ़ी परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। नर्मदा समग्र भी अपने आरंभ से ही घाट सफाई और स्वच्छता विषय को लेकर आग्रह करता रह है। जिस पहल से कई लोग जुड़े और उसे आत्मसार किया। स्वच्छता एक बहुत बड़ी पहल है और देश के हर व्यक्ति को इसमें जुड़ना चाहिए, अपनी गली, महोल्ला, गाँव, नगर, शहर को स्वच्छ रखने में अपना यथासंभव योगदान देना चाहिए। यह हमारा एक दायित्व है देश के प्रति, जिसका हमने निर्वहन करना चाहिए।
अनिल जी के कहे शब्द जो हमारी संस्था में और कार्यकर्ताओं के लिए मूल मंत्रा है वह है “मैं से हम”, और “हम से “सब”, किसी भी कार्य की शुरुवात स्वयं से ही होती है फिर एक से दो, दो से चार होते हुए हम एक बड़े समूह में यह कार्य या विचार को होता हुआ देखते हैं। यही आग्रह है की कोई और पर्यावरण के लिए कुछ करेगा तब मैं करूँगा, ऐसा विचार न करके हमसे जो बन पड़े, अकेले से जितना बन पड़े हमने प्रयास करना चाहिए, धीरे-धीरे और लोग जुड़ेंगे और यह एक जन-अभियान का रूप लेगा।
आपको “रजत की बूंदों “ के लिए राष्ट्रीय जल पुरस्कार भी मिला है। यह पुरस्कार आपके लिए क्या मायने रखता है। इस पुरस्कार का श्रेय आप किसे देना चाहेंगे?
यह बड़े गर्व और सम्मान का विषय है की “रजत की बूँदें” सम्मान प्राप्त हुआ। यह संपूर्णतः नर्मदा समग्र का ही सम्मान है। मैं तो बस उसे ग्रहण करने मात्रा गया, और मैं इसे इसी प्रकार से मानता हूँ। मुझे यह अवसर मिला और सम्मान प्राप्त करके मुझे प्रोत्साहन मिला की मैं और अधिक अच्छा कार्य कर सकता हूँ, और प्रयास और मेहनत कर सकता हूँ। इसका संपूर्ण श्रेय नर्मदा समग्र के कार्यकर्ता, उससे जुड़े लोग और संपूर्ण नर्मदा समग्र परिवार को है, जिसे हम सब मिलकर इस कार्य को एक रूप देने वाले नर्मदा समग्र के प्रणेता अनिल दवे जी को समर्पित करते हैं।
आपके अब तक के कार्यकाल का सबसे कठिन दौर कौन
सा रहा। जीवन मे आने वाली चुनौतियों को किस रूप मे स्वीकारते हैं?
सबसे कठिन दौर, अनिल माधव दवे जी का जाना रहा, और इस कमी की कभी भरपाई भी नहीं हो सकती जो नर्मदा समग्र ने और कई-कई कार्यकर्ताओं ने खोया है। शेष व्यक्तिगत जीवन में लगातार पिछले 5 वर्षों में जो क्षतियाँ हुई जैसे दादा जी, पिताजी, दादी जी इत्यादि का जाना, और कुछ करीबी लोगों का जाना यह शब्दों में शायद में व्यक्त नहीं कर सकूँगा।
जीवन में चुनौतियाँ तो रहेंगी ही, और थोड़ी होनी भी चाहिए, तभी तो हम सजग रहते हैं, सक्रिय रहते हैं, प्रयास करते हैं, आकलन करते हैं, सीखते हैं, आगे बढ़ते हैं।
देश की हाईटेक युवा पीढी में आप कैसी संभावनाएं आप देखते हैं। उन्हें क्या संदेश देना चाहेंगे?
देश का युवा सक्रिय है, काफी जागरूक है, उसके पास अब तकनीकी संसाधन है जिसके उपयोग से वह काफी सशक्त भी है। अपने मूल से जुड़े रहने पर अवश्य ही पूरे विश्व में भारत का युवा अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर हर क्षेत्र में अग्रणी रहेगा, यह मुझे लगता है।
संदेश की जगह मैं केवल आग्रह करना चाहूँगा कि –
देश में युवाओं को अपनी कार्य क्षमता पर ध्यान देना चाहिए। काम का या मेहनत का कोई पर्याय नहीं। जो भी कर रहे हैं वह मन से और ढंग से करना चाहिये।
टेक्नोलॉजी का उतना ही उपयोग करना चाहिए जितना आवश्यक है जो आपके कार्य को सरल करे और आपका समय का ठीक व अधिकाधिक उपयोग हो सके।
भारतीय जीवनशैली, हमारे पारंपरिक पीढ़ीगत ज्ञान हस्तांतरण को भी समझना और उसके सामाजिक-सांस्कृतिक और वैज्ञानिक पहलुओं को गहराई से जानने का प्रयास करना चाहिए।
अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की चिंता करना चाहिए क्योंकि कहते हैं ना “स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है” और “स्वस्थ नागरिक किसी भी देश की सबसे बड़ी संपत्ति हैं”।
अपने स्वयं के हित में देश का हित और प्रकृति की सेवा हमेशा निहित हो इसकी पूरी कोशिश करनी चाहिए।