भारत रूस के मजबूत होते संबंधो का आधार है सहयोगात्मक विकास और विश्वास
मैं अपने को पुराने ढर्रे का पत्रकार मानता हूं, शुरु से ही मेरे वरिष्ठ साथियों ने चेताया था कि इस पेशे में पैसा नहीं पर ईमानदारी के लिए प्रतिष्ठा जरूर है।
वरिष्ठ पत्रकार और मास्को स्थित स्वतंत्र राजनीतिक प्रेक्षक विनय शुक्ला से डॉ. मंजू चौधरी की विशेष बातचीत
आज की हमारी कवर स्टाेरी में रसिया यूक्रैन विवाद के बीच हम अपने पाठकगण को लिए चलते हैं रसिया और मुलाक़ात करवाते हैं रूस में रह रहे भारतीय मूल के वरिष्ठ पत्रकार विनय शुक्ला से और जानने की कोशिश करते हैं वैश्विक परिदृश्य पर भारत और रूस के सम्बन्धो का आधार क्या है साथ ही हमने बदलते हुए पत्रकारिता के स्वरूप पर भी अपने साक्षात्कार में बातचीत की है। आइये मुलाकात करते हैं विनय जी से…
विनय शुक्ला जी रूस में वरिष्ठ पत्रकार हैं जिन्होंने 25 वर्ष के दौरान प्रमुख भारतीय समाचार एजेंसियों – UNI और PTI के लिए मिखाईल गोर्बाचोव के “पेरेस्ट्रोइका” सुधारों से लेकर सोवियत संघ के विघटन और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा नए रूस के पुनुरुत्थान की प्रक्रियाओं पर समय – समय पर अपनी पत्रकारिता के कार्य से प्रकाश डाला है।
विनय जी भारत से रूस तक का आपका मीडिया के सफर का आरम्भ कैसे हुआ ?
जब मैं मास्को विश्वविद्यालय के चौथे वर्ष का छात्र था मास्को रेडियो के एक संवाददाता ने भारतीय छात्रों से भेंटवार्ता के बाद मुझे उनके यहां हिंदी सेवा में पार्ट टाइम उद्घोषक का काम करने का सुझाव दिया। शुरु में कोई सरल मैटर पढ़ने को दिया गया, पर अंतरराष्ट्रीय राजनीति की मेरी समझ को देख कर मुझे अनुदित मैटर की स्टाइल एडिटिंग का काम भी सौंप दिया गया। धीरे धीरे मेरी अनुवाद, एडिटिंग की परिपक्वता को देख कर मुझे रेडियो ताशकंद की विदेश प्रसारण सेवा के हिंदी विभाग में न्यूज एडिटर\रीडर नियुक्त कर दिया गया। बस यह शुरुआत थी जिसने मुझे मीडिया से जोड़ दिया।
मेरा जन्म पुरानी दिल्ली के एक ऐसे परिवार में हुआ जिसमे दो पत्रकार थे, मेरे ताऊ जी वायसराय के काल से एक्रेडिटेड पत्रकार थे और चाचा फ्रीलांसर। तो मेरा बचपन चाचा और ताऊ की सोहबत में बीता इसीलिए शायद इस पेशे में मेरी रुचि बचपन से ही पनप रही थी।
आप ने जब पत्रकारिता में शुरुआत की तब से लेकर आज तक क्या बदलाव देखते हैं ?
मनु जी तब से आज तक पत्रकारिता में जमीन आसमान का अंतर आया है। तब पत्रकारिता एक मिशन था समाज को जागृत करने का, पर जैसे जैसे राजनीति एक पेशे में परीवर्तित हो गई है वैसे ही पत्रकारिता विशेष रूप से इलेक्ट्रोनिक मीडिया एक व्यवसाय हो गया है धनार्जन का। मैं अपने को पुराने ढर्रे का पत्रकार मानता हूं, शुरु से ही मेरे वरिष्ठ साथियों ने चेताया था कि इस पेशे में पैसा नहीं पर ईमानदारी के लिए प्रतिष्ठा जरूर है।
आपने रूस और भारत में बढ़ती राजनीतिक नजदीकियों को बहुत करीब से देखा है। कितना कठिन या आसान रास्ता रहा है यह दोनों देशों के बीच ?
मनु जी मैं 1968 में भारत सरकार की ओर से जेएनयू के लिए रूसी भाषा के अध्यापकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत मास्को आया था। उस समय के सामान्य राजनयिक सोवियत संघ को प्राय: अंग्रेजों के चश्मे से देखते थे। हम छात्रों को भी कुल मिला कर हीन दृष्टि से देखा जाता था। 1969 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र स्व. दुर्गा प्रसाद धर की मास्को में राजदूत पद पर नियुक्ति ने नई दिल्ली और मास्को के बीच संबंधों में आमूल परिवर्तन किए जिसके परिणामस्वरूप 1971 की भारत – सोवियत मैत्री संधि हुई और बांग्लादेश मुक्ति अभियान में सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया। प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई की सरकार ने भी सोवियत संघ के प्रति अपनी पूर्ववर्ती इंदिरा गांधी की नीति जारी रख कर अनिश्चितता को समाप्त करके पश्चिम के मंसूबों पर पानी फेर दिया। मानना पड़ेगा कि इस में उनके विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेई का निर्णायक योगदान था।
मुझे याद है जब विदेश मंत्री वाजपेई पहली बार मास्को आए थे तो मैत्री सभा में उन्होंने घोषणा की थी कि वे आजीवन इस देश के मित्र रहेंगे। उन्होंने वास्तव में अपनी शपथ को निभाते हुए 2000 में भारत – रूस सामरिक साझेदारी के घोषणापत्र पर राष्ट्रपति पुतिन के साथ हस्ताक्षर किए। उनके उत्तराधिकारी डा. मनमोहनसिंह के काल में अमरीका के साथ संबंधों में सुधार की नीति के कारण कुछ सुस्ती तो जरूर आई पर कमोबेश पुराने संबंध बरकरार रहे। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को लोग शुरु में मोरारजी देसाई की तरह अमरीका परस्त मानते थे और आशंका थी कि वे राष्ट्रपति पुतिन के साथ वाजपेई जैसे मधुर संबंध न बना पाएं। परंतु आगे की घटनाओं ने उल्टा ही प्रमाणित किया। विदेश मंत्री जयशंकर के अनेक बयान और 2023 के दिसंबर में रूस की यात्रा रूस भारत और रूस की स्थिरता और सुदृढ़ता की पुष्टि करते हैं।
दोनों देशों के बीच संबंधों में सोवियत संघ के विघटन के बाद के पहले दिनों में बहुत अनिश्चिता थी। जनवरी 1992 में प्रधानमंत्री नरसिंह राव के प्रतिनिधि के रूप में मास्को आए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जे एन दीक्षित से तत्कालीन विदेश मंत्री आंद्रेई कोजिरेव और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने मिलने से इनकार कर दिया था, उस समय मास्को में सूरज पश्चिम में उगने लगा था। तब मास्को से स्वदेश रवाना होते समय दीक्षित ने कहा था: “भूराजनीतिक मजबूरियां दोनों देशों को पास लें आयेंगी।” उनकी यह भविष्यवाणी अब जा कर सच निकली है।
विनय जी सांस्कृतिक स्तर पर भारत रूस के कितना करीब है ?
देखिये मनु जी शायद ही किसी पश्चिमी देश के सिनेमा हाल में हिंदी फिल्म के दौरान आपको सुबकने की आवाजें और शो के बाद लाल-लाल आंसुओं से भीगी आंखों को पोंछते निकलते दर्शक मिलेंगे। देखने में यूरोपीय गोरे रूसी लोग हैं लेकिन दिल में वे भारतीयों की तरह भावुक होते हैं। मास्को जैसे महानगरों को छोड़े तो छोटे और मंझले शहरों, कस्बों और गांवों में पारिवारिक रिश्ते भारत की तरह मजबूत होते हैं। कई विशेषज्ञों की गणना के अनुसार रूसी और हिंदी में 11 हजार शब्द एक दूसरे से मिलते जुलते हैं, उदाहरण के लिए रूसी में द्वेर – हिंदी में द्वार; ब्रात = भ्राता ; देवेर = देवर ; व्दोवा= विधवा; सूखा = सूखा; ओगोन = अग्नि; अखोता = आखेट इत्यादि। बात यह है की रूसी और हिंदी समेत उत्तरी भारत की भाषाएं भारोपीय भाषा परिवार (इंडो – यूरोपियन) में शामिल हैं। शायद इसी कारणवश रूसियों और भारतीयों के बीच सांस्कृतिक निकटता देखने को मिलती है। रूस में अधिकतर ऑर्थोडॉक्स ईसाई धर्म के अनुयायी हैं, पश्चिम के कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट मतों की तुलना में इस पूर्वी मत में तपस्या का प्रावधान है जब संत दूर दराज के विरान इलाकों में शारीरिक कष्ट पाकर ईश्वर की खोज करते हैं। देश के पूर्वी इलाकों में बौद्ध धर्मानुयायियों के लिए तो भारत पवित्र भूमि है ही। रूस के दक्षिण में काकेशस पर्वतों के वासियों का प्राचीन काल से भारत के साथ रिश्ता रहा है। भारत के कई उत्तरी प्रांतों की लोककथाओं में अक्सर “कोहकाफ की परियों” का जिक्र आता है । यहां के इस्लामीकरण के बावजूद भारत के साथ बहुमुखी संबंध जारी रहे।
स्वतंत्रता सेनानी बालगंगाधर तिलक ने अपनी पुस्तक “ THE ARCTIC HOME IN VEDAS” रूस के धुर उत्तरी इलाकों में छः महीने का दिन और छः की रात का उल्लेख किया है। आज भी वहां कई छोटी बड़ी नदियों – नालों के पद्मा , द्विना , गंगा, तीव्र जैसे नामों को देख कर आश्चर्य होता है जहां स्वास्तिक का चिन्ह स्थानीय पुरातन कसीदाकारी में प्राय देखने को मिलता है। स्वास्तिक जो प्राचीन रूस में सूर्य का प्रतीक माना जाता था यहां “कालव्रात” कहलाता है कहीं संस्कृत के “काल वृत्त” में इसकी उत्पत्ति तो नहीं हैं?
रूस में रह रहे भारतीयों का रूस और भारत के बीच सम्बन्धो को मजबूत करने में किस तरह का योगदान रहा है ?
1950 के दशक में अंतरसरकारी समझौते के अंतर्गत मास्को में भारत से अनुवादकों को बुलाया गया था जिनको प्रसिद्ध रूसी लेखकों की रचनाओं का हिंदी वा अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद करना था, इनमें भीष्म साहनी भी थे। ये एक शुरुआत थी फिर मास्को के प्रगति और रादुगा प्रकाशन गृहों में कार्यरत भारतीय अनुवादकों ने विभिन्न भारतीय भाषाओं में रूसी और सोवियत लेखकों की अमर कृतियों का अनुवाद करके भारत और रूस के लोगों को जोड़ने में अनमोल योगदान दिया।
रूस में रामायण का नाट्य रूपांतर किया गया जिसे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देखा। उसमें रामचंद्र जी की भूमिका निभाने वाले कलाकार गेननादी पेचनीकोव को कालांतर में पद्मश्री की उपाधि से अलंकृत किया गया। तो अब मास्को में रहने वाले भारतीयों के सांस्कृतिक समाज “दिशा” ने युवा रूसी कलाकारों की सहभागिता से पद्मश्री पेचनीकोव नामक रामलीला दल की स्थापना की जिसे दो बार अयोध्या के दीपोत्सव में दो बार प्रथम पुरस्कार मिला।
भारत और रूस के बीच संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में मास्को स्थित हिंदुस्तानी समाज, इंडियन बिजनेस अलायन्स , ओवरसीज बिहारी एलाइंस और ऑल रशिया मलयाली एसोसिएशन (AMA), सांस्कृतिक केंद्र सीता आदि सामाजिक संगठनों का बड़ा योगदान है।
रूस यूक्रैन विवाद की वजह से यूरोप और अमरीका ने बहुत सारे आर्थिक प्रतिबंध रूस के खिलाफ लगाये। आपकी नज़र में आम रूसी जनता पर इसका क्या असर रहा ?
देखिए आम जनता पर इन आर्थिक प्रतिबंधों का कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं है। प्रभाव केवल उन पर पड़ रहा है जिनका सूरज पश्चिम में उगता है, यानिकि जो विदेशी कारों, विलासिता के आयातित मालों के उपभोक्ता और पश्चिमी देशों की यात्राओं के आदी हैं।
अमेरिका और रूस के बीच की खींचतान कब तक जारी रहने की सम्भावना है ?
मनु जी सच तो यह है कि रूस दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो अपने परमाणु अस्त्रों से कई बार अमरीका को नष्ट करने में समर्थ है, जब तक वह वॉशिंगटन को दुनिया में अपनी मनमानी करने के लिए चुनौती है तब तक वह आंख का रोड़ा रहेगा इसलिए उसके टुकड़े – टुकड़े होने तक खींचातानी जारी रहेगी। हालांकि 2003 में राष्ट्रपति पुतिन ने दोनों महाशक्तियों के बीच सहयोग से सारी दुनिया के विकास के हित में काम करने का सुझाव दिया था। पर अमरीका रूस को बराबरी का दर्जा नहीं देना चाहता और मंगोलों की 500 साल की दासता के बाद से अब रूस और रुसी समाज किसी की अधीनता नहीं स्वीकार करेगा।
रूस यूक्रैन विवाद कब तक जारी रहने की सम्भावना है और इसका क्या कोई हल निकट भविष्य में नज़र आता है आपको ?
दिसंबर 1991 में सोवियत संघ के विघटन के कुछ महीने बाद यूएनआई के संवाददाता के रूप में मैंने यूक्रेन की राजधानी कीव की यात्रा की थी। वहां मैंने हर तबके के लोगों से बातचीत की। आम लोग सोवियत संघ की बहाली के पक्ष में थे तो पश्चिमोन्मुखी उदारवादी, राष्ट्रवादी रूस से बिलकुल नाता तोड़ने के पक्ष में क्योंकि स्टालिन की मौत के बाद से क्रेमलिन की गद्दी यूक्रेनी मूल के लोगों के पास रही थी। कुल मिला कर उस वक़्त मेरा निष्कर्ष यह निकला था कि यूक्रेन और रूस के संबंध वैसे ही होंगे जैसे पाकिस्तान के भारत के साथ। तब मेरे सभी मित्र गण हंसते थे पर अब रूसी विशेषज्ञ भी इस कड़वी सच्चाई को मानने लगे हैं।
आज के साक्षात्कार में हमने मुलाकात करवाई वरिष्ठ पत्रकार विनय शुक्ला जी से जिन्होंने न केवल बदलते हुए रशिया को बहुत करीब से देखा है और अपने रिपोर्टिंग कार्य के माध्यम से उसके गवाह भी बने हैं साथ ही भारत रूस के लगातार होते मजूबत संबंधो के साक्षी भी हैं। मौजूदा समय में विनय जी मास्को स्थित स्वतंत्र राजनीतिक प्रेक्षक हैं जो यूरेशिया की सामरिक सुरक्षा और भारत – रूस संबंधों की समस्याओं पर लिखते हैं।
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