फ़िल्म कलाकारों का कल और आज…सिनेमा के सितारे कभी फ़लक… कभी ज़मीं पर

फ़िल्म कलाकारों का कल और आज
सिनेमा के सितारे कभी फ़लक… कभी ज़मीं पर
पिछली होली पर, अमिताभ बच्चन जी के अपने फेसबुक पृष्ठ पर पोस्ट किये गए एक अंतरंग फोटो को याद करने पर मैं आज इस विषय पर लिखने को मजबूर हुआ।
शाहरुख़ खान की किसी फ़िल्म का संवाद है।
‘डोंट अंडरएस्टिमेट द पावर ऑफ़ अ कॉमन मेन’ यानी आम आदमी की क्षमता को कम मत आंकिये’
राजीव सक्सेना
पटकथा लेखक और निर्देशक
राजीव सक्सेना ने फ़िल्म समीक्षा पटकथा लेखन और निर्देशन के क्षेत्र में विगत तीस वर्ष से सक्रिय रहकर अपनी जगह बनाई है |
25 वर्ष की उम्र से, राष्ट्रीय सहारा, संडे मेल, सन्डे आब्जर्वर, सरिता, धर्मयुग, साप्तहिक हिंदुस्तान, नवनीत, कादम्बिनी, फिल्मफेयर, स्क्रीन, दैनिक जागरण, दैनिक नई दुनिया, दैनिक भास्कर, नवभारत टाइम्स, दैनिक नवभारत आदि 25 से अधिक पत्रिकाओं और अखबारों में 20 वर्ष सतत लेखन, 4 हजार से ज्यादा आलेख, इंटरव्यू, रिपोर्ताज फीचर आदि का प्रकाशन हो चुका है ।
दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, दैनिक नवभारत जैसे आठ अखबारों, पत्रिकाओं में, प्रभारी संपादक, रविवारीय परिशिष्ट सिनेमा परिषशिष्ट, प्रांतीय समाचार प्रभारी और कला समीक्षक बतौर ढाई दशक तक कार्यरत ।
दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, दैनिक नवभारत जैसे आठ अखबारों, पत्रिकाओं में, प्रभारी संपादक, रविवारीय परिशिष्ट सिनेमा परिषशिष्ट, प्रांतीय समाचार प्रभारी और कला समीक्षक बतौर ढाई दशक तक कार्यरत ।
दूरदर्शन के लिए टेलीफ़िल्म ‘केतकी’ ‘फ़िल्मी बतियां’, ‘हमारे आसपास’ जैसे आधा दर्जन टीवी शोज में निर्देशन और लेखन, दूरदर्शन वृत्तचित्र ‘मालवा का काश्मीर’, ‘देवास: कल, कला और अध्यात्म का संगम’ और ‘मालवा की विरासत’ ‘पाषाण विरासत का साक्षी’ श्वेतक्रांति 2000, ‘मालवा का कश्मीर’ जैसी 12 लघु फिल्मो का लेखन निर्देशन इन्होंने किया है। एपिक चैनल के लिए लगातार दस टीवी शो का निर्माण, निर्देशन, लेखन किया पिछले दिनों ‘सरोकार’ और इन दिनों प्रति रविवार ‘रसरंग बहार’ टीवी शो का 18 जुलाई से एपिक पर प्रसारण रीजनल और मुख्य धारा के सिनेमा और टीवी धारावाहिकों के लिए लेखन और निर्देशन के क्षेत्र में सक्रिय हैं।
वाकई आम आदमी चाहे तो कुछ भी कर सकता है, अपनी शक्ति का सदुपयोग भी तो दुरूपयोग भी सामाजिक मुद्दों पर बैठे बैठे बयानबाजी, जिसका कोई खास अर्थ नहीं हुआ करता न ही कोई फायदा आम आदमी के मुँह से हर वक़्त आलोचना निकलते रहना एक शग़ल सा बना हुआ है।
आम आदमी औरों को चाहे कम लपेटे पर फिल्मवालों को तो खासा लपेटता है ये वही आम आदमी है, जो दर्शक बतौर किसी हीरो की फ़िल्म में लाइन लगाकर उसे सुपरहिट कर देता है। एक ही हीरो को सर पे चढ़ाकर उसकी हर फ़िल्म को कामयाब कर देता है, उसे लगभग पूजने ही लगता है और वही कलाकार आपकी ही बदौलत इज्जत और पैसा कमाने लगता है तो इसी आम आदमी या आम दर्शक में अपने ही चहेते कलाकार को लेकर भावनाएं बदलने लगती हैं जो वाकई शोध का विषय है।
अमिताभ बच्चन जैसे कई अभिनेता अपने फेसबुक पेज पर प्रसंशकों के बीच लगभग रोज अपने दिल की बात खोलकर रखते हैं लेकिन जरा उनके पेज पर प्रतिक्रिया देखें आधे से ज्यादा वही बातें मिलेंगी जो ऊपर कही गई हैं।
इन्हें कौन समझाये कि रुपहले पर्दे पर जिन अभिनेता अभिनेत्रियों को अभिनय करते हुए वो आँख फाड़ फाड़ कर देखा करते हैं। वो “पीके” फ़िल्म के आमिर खान की तरह ऊपर के किसी ग्रह से नहीं उतरे आप और हमारे बीच से ही खासी मेहनत और संघर्ष के ज़रिये ऊंचाई पर पहुंचे हैं तब भी और आज भी हमारे भाई बहन हर सेकंड जिन फ़िल्म टेलीविज़न और अब वेबसीरीज एक्टर्स को जी भर के बेमतलब कोसते नज़र आते हैं वो सभी देश भर के छोटे मझौले कस्बों से मध्यवर्गीय या उच्च मध्यवर्गीय परिवारों से ही मुंबई पहुंचे हैं।
पढ़ कर तो देखिये किसी भी फ़िल्म स्टार की अंदर की कहानी खासकर उनकी जिनके मां बाप या कोई गॉडफादर फ़िल्म लाइन में नहीं थे। ख़ुद के दम पर पहुंचे और जगह बनाई। उनके स्ट्रगल की चरम सीमा उनके दुख दर्द परिवार के समझौते समर्पण आपने देखे नहीं और जब आप लोगों ने ही उन्हें कामयाब किया। उनकी फ़िल्में देख देख कर तो उन्हीं से ईर्ष्या होने लगी, बराबरी करने लगे, चिढ़ने लगे उनकी लाइफस्टाइल से कभी सोचा किस कदर मेहनत होती है। दिन रात एक दिन में कितना काम कितनी बार मेक अप चढ़ाना – उतारना संवाद रटना टेक – रीटेक एक स्टूडियो से दूसरे का लम्बा सफ़र एक ही दिन में फिर डबिंग फिर प्रीव्यूविदेश के लिए देर रात या सुबह बिना सोये फ्लाइट पकड़ना आम आदमी इसे भी ऐश मानता है ख़ुद उनसे पूछिए, उनके परिवार से जानिए।
जाना-माना कलाकार जब रिटायर हो जाये और उसके बेटे बेटी इस लाइन में दिलचस्पी ना लें तो उनकी क्या हालत होती है इसके अनेक उदाहरण मैंने बम्बई में रहकर अपनी आँखों से देखे हें।
कोई, पांच – छः बरस पहले की बात है…
मेलोडी मेकर्स ऑर्केस्ट्रा के प्रमुख ओ पी सिंह के बेटे एक्टर आकाश के साथ कार की अगली सीट पर अँधेरी ईस्ट की ओर से जुहू सर्किल जाते हुए, अचानक आकाश को ब्रेक लगाना पड़ा सड़क क्रॉस करते हुए व्यक्ति को गौर से देखा “अरे, ये तो विश्वजीत हैं” आकाश बोल पड़े।
जी हां, वही ‘बीस साल बाद’ में ‘बेक़रार करके हमें यूं ना जाइये’ गाने वाले खूबसूरत नायक विश्वजीत थे सामने जो, दिल्ली से पार्लियामेंट का चुनाव भी लड़ चुके थे। बारिश के पानी से भरी सड़क पर पेंट को एक हाथ से ऊँचा किये, दूसरे हाथ में स्लीपर्स लिए विश्वजीत सड़क पार कर रहे थे ब्रेक लगने से रुके’सॉरी’ बोला और आगे निकल गए आकाश मुझसे बोले कि ‘इन्हें अपनी कार में लिफ्ट दें क्या जहां जाना हो छोड़ देंगे आखिर स्टार रहे हैं’ मैंने उन्हें रोका’बिलकुल नहीं अतीत जो भी रहा हो वर्तमान में सिर्फ उनका स्वाभिमान उनके साथ है वो उनसे मत छीनिये प्लीज’
इसी तरह कुछ बरस पहले अँधेरी, बम्बई के चार बंगला स्टॉप के पास किसी मित्र से बात करते हुए पड़ोस में खड़े शख्स पर ध्यान गया जो ऑटो रिक्शा को रोकना चाहते थे पर अपनी रफ़्तार में जाते ऑटो रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
ये जॉय मुख़र्जी थे ’फिर वही दिल लाया हूं’ सरीखी दर्जनों फिल्मों के मशहूर हीरो तभी एक कॉलेजगोइंग लड़की ने एक ऑटो को रोका और जॉय साहब को उसमें बैठने को कहा एक मुस्कुराहट के साथ, लड़की को ‘थैंक्स’ बोलकर वो रिक्शा में निकल गए।
“चा चा चा” जैसी पचासों फ़िल्मों के नायक चंद्रशेखर जी अँधेरी वेस्ट स्टेशन के सामनेवाली एक बेहद आम सोसायटी के सामने लुंगी पहनकर आराम से घूमते कई बार मिले।
उसी सोसायटी में फर्स्ट फ्लोर पर रहते थे।
नवीन निश्चल जी की कहानी हर किसी ने पढ़ी।
अनिल धवन, बड़े भाई डेविड धवन जैसे नामी प्रोड्यूसर के होते हुए काम की तलाश में रहा करते हैं ललिता पवार जी से लेकर उर्मिला भट्ट आदि चरित्र अभिनेत्रियों ने ख़राब समय देखे हैं वहीँ “हमराज” की सुन्दर नायिका विमी किन हालात में दुनिया से बिदा हुई जानना दुखद होगा। निम्मी जी अभी अभी नहीं रहीं उनके साथ भी ऐसा ही गुज़रा।
साठ से सत्तर के दशक तक छाये रहे वो कलाकार जिन्होंने छोटे छोटे मकान और कार जरूर ले ली हों पर, घर में उनकी विरासत सम्हालने वाला नहीं होने से बम्बई में सर्वाइव करना उनके लिए मुश्किल हो गया।
सिने आर्टिस्ट असोसिएशन या ऐसी ही कुछ संस्थाएं भी लगातार या हर पुराने आर्टिस्ट की मदद करने में सक्षम नहीं।
जिन पुराने लोकप्रिय कलाकारों ने अपने बच्चों या मित्रों के ज़रिये स्टूडियो या प्रोडक्शन हाउस आदि शुरू कर लिए उनमें सायरा बानो जी, आशा पारेख जी सरीखी कई हीरोइंस और केरेक्टर आर्टिस्ट भी हैं जीतेन्द्र जी, धर्मेंद्र जी और अमिताभ जी ने समय रहते ख़ुद को सम्हाल लिया और बुढ़ापे में भी जमकर मेहनत कर ही रहे हैं।
मेहनत, संघर्ष उद्योगपति भी कम नहीं करते पर उनकी भव्य कारोबार और नियमित आमदनी के सामने फ़िल्म कलाकारों की अनिश्चित आय दस प्रतिशत भी नहीं होती।
बहुत कम हैं जो करोड़पति कहलाने के लायक हैं।
पचास प्रतिशत से ज्यादा फ़िल्म आर्टिस्ट्स के फ्लेट और बंगले
भी प्रोड्यूसर्स या फाइनेंसर्स की गारंटी पर बैंक लोन से खरीदे हुए होते हैं यह कहा जा सकता है हर कोई अपनी अपनी खूब जानता है.