कला के क्षेत्र में माहिर एक खिलाड़ी
सोशल मैसेज कवाली भूमिकाएं मेरी प्राथमिकता है
राजकुमार खुराना से कारपोरेट इनसाईट के लिए गुरबीर सिंघ चावला की विशेष बातचीत-
राजकुमार खुराना
एक्टर
प्रोड्यूसर
स्पोर्ट्स पर्सन
एक्टिंग से आपका नाता कैसे जुड़ा। सिनेमा में रुचि आपको विरासत में मिली या यह आपकी अपनी दिलचस्पी थी?
अभिनय में बचपन से ही मेरी रुचि थी। मुझे याद है मैं दस साल का था तब हमने ब्लैक एंड व्हाईट टीवी लिया था और हर बुधवार हम ‘चित्रहार’ प्रोग्राम देखा करते थे। रविवार को ‘रंगोली’देखते थे। उस दौरान सदाबहार हीरो राजेश खन्ना का स्टारडम चल रहा था। राजेश खन्ना मेरे दिल में बस गए और मैं उनका बहुत बड़ा फैन बन गया। उन्हें देखते-देखते मुझे भी एक्टिंग में गहरी दिलचस्पी हुई। पन्द्रह वर्ष की उम्र में मैंने श्रीराम सेंटर मंडी हाउस में जाकर नाटक देखने शुरू किए। एक-दो नाटकों में काम भी किया। उसी दौरान मुझे एक परिचित ने मोहम्मद अजीज कुरैशी से मिलवाया उन्होंने ही मुझे एक्टिंग करने का अवसर दिया। अभिनय की कला मुझे विरासत में नहीं मिली। मेरे परिवार में कोई भी अभिनय के क्षेत्र से नहीं जुड़ा हुआ था। यह मेरे अपने दिल की ही आवाज थी जिसने मुझे अभिनेता बनने की प्रेरणा दी। मैंने अपने प्रयास जारी रखे और धीरे-धीरे कामयाबी मिलने लगी।
सिनेमा के सफर में आपको पहली सफ़लता कौन सी मिली।पहली फिल्म और किरदार का कैसा अनुभव आपका रहा?
अपने अभिनय कैरियर के शुरूआती दौर में मुझे जे.पी. सैनी और शंकर लाल बंसल जी का मार्गदर्शन मिला। इनकी प्रेरणा से मैंने फिल्म लाइन में कदम रखा। इन्होंने मुझे बेहद प्रोत्साहित किया। पहली फिल्म जो मुझे मिली उसका नाम ‘नाखून’ था जो कि एक ‘हॉरर’ मूवी थी। इस फिल्म में मैंने मुख्य भूमिका निभाई थी। व्यावसायिक रुप से तो यह फिल्म सफल नहीं हुई लेकिन इस फिल्म से सिने लाईन में एक्टर के रूप में अपना काम मैने शुरू किया। उसी दौरान एक फिल्म ‘गंगा के पार’ में भी अभिनय किया था। जिसका निर्माण अखलाक रजा ने किया था। इस फिल्म में मैंने विलेन की एक संक्षिप्त भूमिका निभाई थी। शुरूवाती दौर का मेरा अनुभव अच्छा था क्योंकि अभिनय के लिए मैं समर्पित था, आज भी हूं। टीवी सीरियल्स और मूवीज में मेरे काम करने का जो सिलसिला शुरू हुआ जो आज भी जारी है।
हिंदी के अलावा आप दक्षिण भाषाओं की फ़िल्मों में भी काम कर रहे हैं। दक्षिण भाषाओं की फिल्मों के निर्देशकों और हिंदी फिल्मों के निर्देशकों के काम करने के तरीकों में आप क्या अंतर पाते हैं?
हिन्दी मूवीज में काम करते उस दौरान मैंने तमिल फिल्म में काम किया। तमिल फिल्मों में भी काम हासिल करने के लिए ‘चेन्नई’जाता था। तमिल फिल्मों में काम करने का पहला अवसर मुझे विजय गणेशन ने अपनी तमिल मूवी ‘वेकप’ के लिए दिया। तमिल मुझे नहीं आती थी लेकिन ‘डबिंग’ के द्वारा इसे परफेक्ट कर लिया जाता था। जहां तक बॉलीवुड और साउथ की फिल्मों के निर्देशकों की कार्यशैली की बात है तो साउथ की इंडस्ट्री में लोग बहुत प्रोफेशनल होते हैं, साउथ में समय की प्रतिबद्धता को बहुत गंभीरता से लिया जाता है। इसके साथ-साथ फिल्म के प्री-प्रोडक्शन पर बहुत अच्छा काम होता है जिससे वहां की फिल्में समय सीमा में पूरी हो जाती हैं। जहां तक दोनों इंडस्ट्री के निर्देशकों की बात है तो सभी निर्देशक अपना काम पूरी तन्मयता से करते हैं। सभी निर्देशकों का काम पूरी टीम के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ देने का होता है। मेरा सौभाग्य है कि दोनों इंडस्ट्री में मुझे काम करने के अवसर मिले।
भारतीय डाक विभाग द्वारा आपके नाम का एक पोस्टल स्टांप भी जारी किया गया है। यह बड़े गर्व की बात है।अपनी इस उपलब्धि के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
मुझे इस बात की बहुत खुशी और गर्व है कि भारतीय डाक विभाग द्वारा मेरे नाम का एक पोस्टल स्टैम्प जारी किया गया। पोस्टर डिपार्टमेंट के प्रमुख सी. सुधीर तारे ने इसे जारी किया।
आप विभिन्न टॉक शोज का हिस्सा रहे हैं। आपका सर्वाधिक पसंद किए जाने वाला टॉक शो कौन सा रहा है?
मैं बहुत सारे ‘टॉक शोज’ का हिस्सा रहा हूं। मेरे सभी टॉक शोज बहुत पापुलर हुए। ‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती’ रीडस् शर्मा का यह टॉक शो सर्वाधिक पसंद किया गया। इसके साथ ‘डिजायर न्यूज’ के सीईओ संजीव शर्मा जी का ‘टॉक शो’ भी चर्चित हुआ था।
आपने अपने काम से अपनी एक अलग पहचान बनाई है। आप एक सफल कलाकार हैं। अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगे?
अभी तक मैंने जो भी अपने कैरियर और जीवन में हासिल किया है उसका श्रेय मैं ईश्वर को और अपने माता-पिता का देना चाहूंगा। माता-पिता ने मुझे हमेशा अनुशासित होकर जीना सिखाया। अपनी सफलता का श्रेय मैं अपने परिवार, पत्नी और बेटी को देना चाहूंगा जो हर पड़ाव पर मेरे साथ रहे और हर कदम में मेरा साथ दिया। अपने दर्शकों को भी हार्दिक आभार और धन्यवाद देना चाहूंगा जो मुझे पसंद करते हैं। दर्शकों के प्यार के बिना एक कलाकार की सफलता अधूरी रहती है।
टेबल टेनिस खिलाड़ी के रूप में आप अपनी किन उपलब्धियों के बारे में बताना चाहेंगे?
खेल के क्षेत्र में मेरी विभिन्न खेलों में रुचि रही है। टेबल टेनिस का खेल मेरा पैशन है और इस खेल की कई प्रतिस्पर्धाओं में मैंने भाग लिया है। इस खेल में मुझे कई अवार्ड भी हासिल हुए हैं। टेबल टेनिस में मैं राज्य और राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी हूं। अभी हाल ही में मैंने दिल्ली की चैम्पियनशिप भी जीती है। खेल और अभिनय दोनों मेरे पैशन रहे हैं और अब प्रोफेशन भी है। मैं टेबल टेनिस कोच भी हूं और मेरे स्टुडेन्ट्स भी राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपना अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। मेरी बेटी भी टेबल टेनिस की खिलाड़ी हैं और अवार्ड विनर हैं। टेबल टेनिस खिलाड़ी होने का मुझे फिल्मी दुनिया में भी फायदा मिला क्योंकि स्पोर्टस् में रहने से हमारी फिजिकल फिटनेस बनी रहती है। फिजिकिल फिटनेस होने से कोई भी काम मुश्किल नहीं लगता। दोनों का तालमेल मेरे कैरियर का आधार है।
आप फिल्मों और टीवी दोनो में सक्रिय हैं। इन दोनों में से कौन सा क्षेत्र आपको ज्यादा पसंद है?
अपने कैरियर के प्रारंभिक पड़ाव में बहुत सारे टीवी सीरियल्स में काम किया और लघु फिल्मों में काम किया। इसके बाद सिने लाईन में आ गया। टीवी और सिनेमा दोनों ही बहुत सशक्त माध्यम हैं। एक कलाकार का ध्यान हमेशा अपने अभिनय पर केन्द्रित रहता है चाहे माध्यम कोई भी हो। दोनों में मैं तुलना नहीं कर सकता टीवी पूरा देश देखता है और सिनेमा फिल्में देखने वालों का भी बहुत बड़ा वर्ग है। दोनो माध्यम अपने-आप में सर्वश्रेष्ठ हैं।
अब तक आपने जितने भी किरदार निभाए हैं उनमें से सबसे ज्यादा चैलेंजिंग किरदार आपके लिए कौन सा रहा है?
मैंने अपने कैरियर में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की भूमिकाएं अभिनीत की हैं। सभी किरदार अपने आपमें चैलेजिंग होते हैं। विभिन्न किरदारों में अपनी अभिनया दक्षता को साबित करना ही एक वास्तविक कलाकार की पहचान होती है। ‘सोशल मैसेज’ देने वाली मूवीज में काम कला मुझे अच्छा लगता है। यहां पर अपनी मूवीज जागृति, सबक, प्रेरणा, इंटरनेशनल पैडमैंन का जिक्र करना चाहूंगा जो सोशल मैसेजेस पर आधारित है।
थिएटर से भी आप संबद्ध रहे हैं। थियेटर और फिल्मों में अभिनय करने में आप क्या अंतर मानते हैं?
थियेटर और सिनेमा के माध्यम से फर्क की बात करें तो मैं थियेटर को ज्यादा सशक्त मानता हूं। थियेटर में जब हम अपना किरदार निभा रहे होते हैं तो मंच पर एक बार में ही अपना किरदार निभाना होता है जो आपने कर दिया वही फाइनल होता है। उसमें कोई री-टेक नहीं होता। फिल्मों और सीरियल्स में विभिन्न किरदार निभाते वक्त भी बहुत मेहनत करनी पड़ती है लेकिन उसमें एडिटिंग और रि-टेक से सुधार की काफी गुंजाइश होता है। एक मंजे हुए थियेटर आर्टिस्ट के लिए फिल्मों और टीवी के लिए काम करना बहुत आसान हो जाता है।
आजकल वेबसीरीज का दौर है। ज्यादातर वेबसीरीज में संवाद अश्लीलता से भरे होते हैं। इसका गहरा प्रभाव आज के युवा वर्ग पर पढ़ रहा है। वेब सीरीज की बढ़ती लोकप्रियता और गिरते स्तर पर आप क्या कहना चाहते हैं?
वेब सीरीज में संवादों की अश्लीलता की जहां तक बात है तो मेरा यह मानना है कि बिना अश्लील संवादों के भी अच्छी वेब सीरिज बनाई जा सकती है। मैं भी वेब सीरीज निश्चित रूप से करना चाहूंगा। जिसमें गुणवत्तापूर्ण संवाद हो, और कोई सोशल मैसेज हो। सिनेमा, टीवी, वेब सीरिज, थियेटर कोई भी माध्यम हो उसमें समाज के लिए एक अच्छा संदेश जरूरी है तभी इन माध्यमों की पूर्ण सार्थकता होगी। व्यवसाय करने के साथ सिने इंडस्ट्री में समाज के प्रति अपने दायित्व का बोध भी होना जरूरी है। सिनेमा एक ऐसा सशक्त माध्यम है जो समाज की सोच को बदलने की ताकत रखता है।
एक निर्माता के रूप में आपके प्रोजेक्ट्स के बारे में जानना चाहेंगे। कैसे अनुभव रहे आपके?
एक निर्माता के रूप में मैंने कुछ प्रोजेक्ट्स किए हैं। निर्माता बनना कोई आसान काम नहीं है। पूरी टीम को साथ लेकर चलना होता है और एक निर्माता के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि उसकी फिल्म समय सीमा में पूर्ण हो और व्यवसायिक और कलात्मक दोनों रूप से सफल हो। निर्माता के रूप में दो प्रोजेक्ट ‘जागृति:और ‘इंटरनेशनल पैडमैन’ सफल रहे। दोनों में सोशल मैसेज था। इनफिल्मों को पुरस्कार भी हासिल हुए।
आपने अपने अब तक के कैरियर में को कुछ भी हासिल किया उससे क्या आप संतुष्ट हैं या अभी बहुत कुछ और पाने की तमन्ना है?
मैंने अपने फिल्मी कैरियर में जो अलग-अलग शेड्स की भूमिकाएं अभिनीत की हैं। सोशल ईश्यूज पर केन्द्रित किरदार मैंने ज्यादातर निभाएं हैं। जहां तक संतुष्टि की बात है तो अच्छी भूमिकाएं निभाते रहने के लिए लिए एक कलाकार हमेशा तत्पर रहता है। मैं चैलेजिंग करैक्टर्स करना चाहता हूं। हर किरदार में अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करता हूं। इसमें मुझे सफलता भी मिली है।
नए कलाकारों को कोई संदेश आप देना चाहेंगे?
सिनेमा के क्षेत्र में जो भी नए टैलेंट अपनी जगह बनाना चाहते हैं चाहे वो अभिनय हो, निर्देशन हो, तकनीकी पक्ष हो, मेरी यही सलाह है कि अपने काम को अच्छे से करने के लिए उसका प्रशिक्षण लेकर आएं। कई बार नए टैलेंट इंडस्ट्री में ब्लैकमेल का शिकार हो जाते हैं क्योंकि उन्हें अपने काम की सही जानकारी नहीं होती। नए कलाकार संयम रखें। सफलता के रास्ते में रुकावटें आती रहती हैं। सफलता का कोई शार्ट-कट नहीं होता। ईमानदारी से अपना काम करें। अपना मूल्यांकन स्वयं के काम से करें। किसी से अपनी तुलना करके स्ट्रेस न लें। अपने काम पर फोकस करें। सकारात्मक सोच रखें तो सफलता निश्चित रूप से मिलेगी। इंडस्ट्री में सभी के लिए रास्ते खुले हैं। मंजिल तक पहुंचने के लिए आपको अपना रास्ता खुद बनाना पड़ेगा।
आपकी एक आगामी फिल्म “खुदा के बंदे” की काफी चर्चा है। इस फिल्म के बारे में जानना चाहेंगे?
जी हां , “ खुदा के बंदे “ एक बड़े स्टार कास्ट वाली फिल्म है। इसमें मैं प्रिंसिपल का एक महत्वपूर्ण किरदार निभा रहा हूं।ये मेरे कैरियर की एक बड़ी फिल्म है।इस फिल्म में मुझे सिद्धार्थ मल्होत्रा,श्रद्धा कपूर,संजय दत्त, डिंपल कपाड़िया, नवाजुद्दीन सिद्दिकी, आशुतोष राणा जैसे कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला है।इस फिल्म के निर्देशक राज मेहता हैं।