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चैलेजिंग भूमिकाएं मेरी पहचान हैं : उपासना सिंह

 

आपके अपने साथ दें तो जीवन में किसी भी बुलंदी को आप पा सकते हैं

सुप्रसिद्ध एक्टर और प्रोड्यूसर उपासना सिंह से गुरबीर सिंघ चावला की खास बातचीत

 

उपासना सिंह

एक्टर, प्रोड्यूसर, डायरेक्टर बॉलीवुड

 

उपासना सिंह अिभनय के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम है। अपने अभिनय की विविधता ही उन्हें श्रेष्ठ बनाती हैं। तमाम फिल्मों में विभिन्नन किरदारों को जीवंत कर के उन्होंने अभिनय की बुलंदियों को छुअा है। टीवी हो या फिल्में दोनों में दर्शकों ने उन्हें सराहा है। उनकी सहज मुस्कान उनके व्यक्तित्व को खास बनाती है। एक्टर, प्रोड्यूसर और डायरेक्टर होने के साथ-साथ एक संस्था ‘सिनटा-CINTAA’ की महासचिव का दायित्व भी निभा रही हैं। यह संस्था बॉलीवुड में कलाकारों के हितों के लिए काम करती है, वे संतोष फाउंडेशन की संस्थापक हैं। यह एक सामाजिक संस्था है जो उनकी मां के लिए समर्पित है जो जरूरतमंद लोगों की मदद और असहाय जानवरों की देखभाल करती है।

सिनेमा के क्षेत्र में आप अपने प्रारंभिक दिनों को किस तरह याद करती हैं। जब घरवालों को आपने अपने इस फैसले के बारे में बताया तो उनकी कैसी प्रतिक्रिया थी?

 

बचपन से ही मेरी रुचि अभिनय में थी। मैं सिख परिवार से हूं। उन दिनों लड़कियों का फिल्म लाइन में जाना अच्छा नहीं समझा जाता था। फिल्म लाइन में मेरे जाने की इच्छा का हमारे रिश्तेदारों ने बहुत विरोध किया परन्तु मां मेरे साथ थीं। वो मेरी फिलिंग्स समझती थीं और चाहती थीं कि मैं और मेरी बड़ी बहन निरुपमा अपनी इच्छानुसार अपने काम के लिए स्वतंत्र रहें। वे हमारे लिए एक मजबूत आधार और मार्गदर्शक बनकर हमारे साथ हमेशा रहीं। मैंने बचपन में क्लासिकल नृत्य कत्थक सीखा। कत्थक सीखने के लिए मैं मम्मी के साथ होशियारपुर से जालंधर जाया करती थी। जालंधर के टीवी और रेडियो सेंटर के नाटकों में मैंने काम किया। इनमें बच्चों के विभिन्न किरदार मैं निभाती थी। रेडियो स्टेशन में काम करने से संवादों के प्रस्तुतिकरण में मेरा परफेक्शन हो गया। उर्दू, हिन्दी, अंग्रेजी की बारीकियां मैंने सीखी और पंजाबी तो मेरी मातृभाषा ही थी। मैंने एमए इन ड्रॉमेटिक आर्ट्स की पढ़ाई चंडीगढ़ में इंडियन थियेटर्स से की, इससे मुझे अभिनय की बारीकियां सीखने को मिलीं।

सिनेमा का शौक आपको विरासत में नहीं मिला। यह आपकी अपनी रुचि थी। मुंबई आने के बाद आपको किन कठिनाइयों को सामना करना पड़ा। पहली फिल्म आपको कौन सी मिली?

 

मुंबई में मेरी मौसी रहती थीं। अपने शैक्षणिक कैरियर के आगे की पढ़ाई के लिए मैं मुंबई आ गई। मुंबई में अपनी पढ़ाई के दौरान मैंने फिल्मों में काम पाने की कोशिक की। मेरी यह कोशिश कामयाब हो गई। मुझे मेरे कैरियर की पहली फिल्म मिली जिसका नाम था ‘बाई चली सासरिए’ यह एक राजस्थानी फिल्म थी जो कि सुपरहिट हुई। मुंबई में अपनी पढ़ाई के दौरान मैंने चार फिल्में की। इसमें एक गुजराती फिल्म ‘अमदावाद नू रिक्शावाली’ पंजाबी फिल्म ‘बदला जट्टी दा’ और एक हिन्दी फिल्म ‘रामवती’में काम किया। पढ़ाई के दौरान ये फिल्में मैने की जो काफी सफल रहीं। बहुत कठिाईयों का सामना मुझे नहीं करना पड़ा। मैं कोशिश करती गई और कामयाबी मिलती गई।

 

आप एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं। थियेटर से भी आप जुड़ी रही हैं। थियेटर के क्षेत्र में आपकी उपलब्धियों के बारे में जानना चाहेंगे?

 

‘थियेटर’ से मेरा बहुत करीब का नाता रहा है। मैंने ‘थियेटर’ में एमए की उपाधि हासिल की है। थियेटर करना मुझे बेहद पसंद है। मुंबई आने के बाद फिल्मों और टीवी में व्यस्तता के कारण ज्यादा ‘थियेटर’ नहीं कर पाई। फिल्मों में काम करते हुए थियेटर का अनुभव बहुत काम आता है। एक थियेटर आर्टिस्ट कोई भी चैलेजिंग रोल सहजता से कर लेता है। मुंबई में मैंने एक प्ले किया था ‘रसिक मछुआरन, यह बेहद चर्चित हुआ था। एक पंजाबी ड्रामा भी किया था ‘घुघी बेटा चल कैनेडा’ यह भी सुपरहिट हुआ। थियेटर एक एक्टर को बेहतर एक्टर बनाता है।

आपने हिन्दी और पंजाबी के अलावा भी बहुत सारी रीजनल फिल्मों में भी काम किया है। एक कलाकार के लिए रीजनल भाषाओं की फिल्मों में काम करना कितना चैलेजिंग रहता है?

 

जहां तक रीजनल फिल्मों में काम करने की बात है तो मैंने भारत की क्षेत्रीय भाषाओं की कई फिल्मों में काम किया है। दक्षिण की एक-दो भाषाओं को छोड़कर मैंने लगभग सभी रीजनल फिल्मों में काम किया है। पंजाबी भाषा की पचास से ज्यादा फिल्में मैंने की है। मराठी, मारवाड़ी, उडिय़ा, बंगाली, तमिल भाषा की फिल्में की है। रीजनल भाषाओं की फिल्मों में काम करने की चुनौती यह होती है कि भाषा का पूरा ज्ञान न होने के कारण आपको अपने संवादों और एक्सप्रेशन्स का बहुत ध्यान रखना होता है। एक कलाकार के लिए रीजनल भाषाओं की फिल्मों में काम करना बहुत बड़ा चैलेंज होता है। मुझे हमेशा चैलेजिंग भूमिकाएं करना पसंद है क्योंकि ऐसे चैलेंज ही आपकी योग्यता को साबित करते हैं। जब मैं इक्कीस साल की थी तो मैंने ‘लोफर’ फिल्म में एक कैरेक्टर रोल कर लिया था। फिल्म ‘जुदाई’, मुझसे शादी करोगी, एतराज, ‘बादल, ‘माइ फ्रैंड गणेशा,में मेरे कैरेक्टर्स काफी अलग और चैलेजिंग थे। चैलेजिंग भूमिकाएं मेरी पहचान है।

 

आपने बहुत सारी पंजाबी फिल्मों में काम किया है। आपकी अपनी सर्वाधिक पसंदीदा पंजाबी फिल्म कौन सी है। अापके पसंदीदा निर्देशक कौन हैं?

 

सर्वन्सवदानी गुरुगोबिन्द सिंघ’ यह पंजाबी फिल्म मेरे दिल के बहुत करीब है क्योंकि इसका संबंध हमारे गुरुजी के साथ है। इस फिल्म में काम करते हुए मुझे एक अलग ही अनुभूति हुई। राम माहेश्वरी जी ने इस फिल्म का निर्देशन किया था। मेरा उसमें संक्षिप्त रोल था, इसे दर्शकों ने बेहद पसंद किया था। मेरे लिए सभी निर्देशक पसंदीदा हैं जिन्होंने मुझमें विश्वास किया और मुझे अपनी फिल्मों में काम करने के अवसर दिए। पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री में मैंने जितने भी कलाकारों के साथ काम किया सब मुझे अपने परिवार की तरह मानते हैं।

आपने फिल्में और टीवी दोनों के लिए काम किया है। दोनों में सफल भी रही हैं। दोनों में कौन सा माध्यम आपको प्रिय है?

 

मैंने टीवी के लिए बहुत सारे सीरियल्स किए हैं। मेरा एक सीरियल ‘फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी’ बहुत हिट हुआ था। ‘लेडी इंस्पेक्टर’ भी बहुत पसंद किया गया। स्टार प्लस का ‘सोन परी’ भी दर्शकों ने बेहद पसंद किया था। जहां तक टीवी और फिल्मों में काम करने की पसंद की बात है तो दोनों ही माध्यम मुझे अच्छे लगते हैं। दोनों माध्यम ही श्रेष्ठ हैं। एक कलाकार की सफलता इसी में है कि वह किसी भी माध्यम में अपना टैलेंट दिखा सके। मैं इस मामले में काफी लकी रही हूं कि मेरी फिल्मों और टीवी सीरियल्स दोनों को दर्शकों का बेहद प्यार मिला। टीवी और फिल्मों में प्राथमिकता की जहां तक बात है मैं व्यक्तिगत रूप से फिल्मों को ही प्राथमिकता दूंगी। फिल्में हमारे लिए एक किताब की तरह होती है जिसे हमेशा सहेजकर रखा जाता है और टीवी सीरियल रोज के अखबारों की तरह है। दोनों की अपनी अलग-अलग विशेषताएं हैं। टीवी और फिल्में दोनों ने मुझे बहुत सारे अवार्ड्स दिलवाए हैं।

 

आपने अपने कैरियर में विभिन्न शैड्स वाली फिल्में की हैं। सकारात्मक, नकारात्मक, हास्य, करैक्टर सभी में आपने अपनी योग्यता दिखाई है। जब आप अपनी विभिन्न भूमिकाओं का विश्लेषण करती हैं तो क्या महसूस करती हैं?

 

मैंने अपने फिल्मी कैरियर में सभी तरह की भूमिकाएं अभिनीत की हैं। जिनमें पाजिटिव, निगेटिव, कॉमेडी और करैक्टर रोल्स शामिल हैं। अलग-अलग भूमिकाएं करके भी एक कलाकार का दिल कभी भरता नहीं है। उसे हमेशा कुछ अलग करने की तमन्ना रहती ही है। जब भी मैं अपने किरदारों का विश्लेषण करती हूं तो लगता है कि मैं इससे और ज्यादा अच्छा कर सकती थी। अपने काम का जो मुझे पैशन है वह मुझे बेहतर से बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है। एक समय था जब मैं पैसों के लिए काम करती थी परन्तु अब मेरी ज्यादा प्राथमिकता किरदारों के लिए होती है। हॉटस्टार ओटीटी प्लेटफार्म पर मैंने एक वेबसीरिज की है ‘मासूम’ उसमें मेरी भूमिका बिल्कुल अलग तरह की है। यह एक इमोशनल रोल है। एक कलाकार की सच्ची उपलब्धि यही है कि दर्शक उसे हर तरह के किरदार में स्वीकार करें और उसकी सराहना करें। मेरी भूमिकाओं में विविधता देखने के लिए मैं अपने दर्शकों से यह आग्रह करूंगी कि मेरी वेबसीरिज ‘मासूम’जरूर देखें। उसमें मेरा एक अलग स्वरूप देखने को मिलेगा।

आज के हाईटेक दौर की फिल्में और सत्तर-अस्सी के दशक में जो फिल्में बनती थी दोनों में क्या अंतर आप देखती हैं?

 

सत्तर-अस्सी के दशक की फिल्में और आज की फिल्मों में तुलना की बात करें तो निश्चित रूप से आज के दौर की फिल्में तकनीकी रूप से बहुत समृद्ध हो चुकी हैं तकनीक मजबूत हुई है लेकिन कथानक और संगीत के मामले में पहले की फिल्में ज्यादा प्रभावशाली हुआ करती थीं। पुरानी फिल्मों को आज भी हम दोबारा देख सकते हैं जबकि आज के दौर की फिल्मों को मुश्किल से एक बार ही देख सकते हैं। आज के फिल्मों के गाने भी आप गुनगुना नहीं सकते क्योंकि पहली लाइन के बाद क्या है यह पता ही नहीं चलता। सबसे बड़ी बात यह है कि आज के समय में फिल्मों के प्रोजेक्ट बनते हैं। प्रोजेक्ट के हिसाब से कलाकार तय किए जाते हैं और कलाकारों के चयन के बाद मूल कहानी में फेरबदल कर लिया जाता है। राज कपूर साहब के दौर में कहानी और पटकथा सर्वप्रथम होती थी। कम संसाधनों में भी लाजवाब फिल्में बना करती थी। वक्त के साथ-साथ नई तकनीकें और काम करने के ढंग में बदलाव आते रहते हैं। इसे हमें स्वीकार करना होगा।

 

आपके आगामी प्रोजेक्ट्स के बारे में जानना चाहेंगे?

 

मेरी कुछ पंजाबी फिल्में रिलिज होने वाली हैं ‘कैरी ऑन जट्टिये, ‘डैडी कूल मुंडे फुल पार्ट-2’ ‘कलीरां किदे् हाथ पैनगियां’, ‘परौणया नू दफा करो’। हिन्दी में ‘लकड़ के लड्डू’ यह एक कॉमेडी फिल्म है। ’टाईगर ऑफ राजस्थान’ एक बायोपिक फिल्म है। मेरी ये फिल्में इस साल प्रदर्शित होगी।

आपने अपने जीवन और कैरियर में जो भी सफलताएं हासिल की हैं। उसका श्रेय आप किसे देना चाहेंगी?

 

मेरी सफलता का श्रेय मम्मी संतोष जी और बड़ी बहन निरुपमा मजीठिया को जाता है। यह दोनों मेरी जिंदगी और कैरियर के उतार-चढ़ाव में हमेशा मेरे साथ रही हैं। मेरी सफलता और असफलता में हर कदम मेरे साथ रही हैं। मेरी मम्मी तो अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन मुझे हमेशा अपने अन्तर्मन से यह अहसास होता है कि वे हर पल मेरे साथ हैं और अपना प्यार मुझे दे रही हैं। बड़ी बहन निरुपमा का भी मुझे बहुत सपोर्ट रहता है। उनके सपोर्ट से ही मैंने निश्चिंत होकर अपने काम को कर पाती हूं क्योंकि कई बार शूटिंग के सिलसिले में बाहर भी जाना पड़ता है। जब भी मैं शूटिंग कर रही होती हूं तो पूरा घर वही सम्हालती हैं। आपके अपने अगर साथ दें तो आप जीवन में किसी भी बुलंदी को छू सकते हैं।

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