मेरी आवाज़ ही पहचान है : अनुपमा मिश्रा

अनुपमा मिश्रा एक सफल पार्श्वगायिका और बैकिंग प्रोफेशनल है। उनकि गायकी का अपना एक अलग अंदाज़ है जो सुनने वालों को बेहद आकर्षित करता है। दो दशकों से वे अपनी आवाज़ से सब को मंत्रमुग्ध कर रही हैं। छत्तीसगढ़ी फिल्मों में इनके गाए गीत लोग अक्सर गुनगुनाते हैं। इनकी एक विशेषता यह भी है की संगीत के क्षेत्र में अपार सफलता हासिल करने के बावजूद वे बहुत मिलनसार और विनम्र स्वभाव की है। इनकी स्वाभाविक मुस्कान इनके व्यक्तित्व को और भी निखारती है। गानों के कैसेट के दौर में वर्ष 2003 इनका एक गाना आया था ‘सतरंगी रे’ जिसने सफलता के सारे रिकॉर्ड्स तोड़ दिए थे। अनुपमा को ‘सतरंगी रे’ की गायिका के रूप में विशेष रूप से जाना जाता है।
निर्देशक सतीश जैन की फिल्म “मोर छईया भुईयां-2” में इन्होंने चार गीत गाए हैं जो सुपरहिट हो चुके है। अपनी उत्कृष्ट गायकी के लिए इन्हें कई अवार्ड्स भी हासिल हुए हैं।
कॉरपोरेट इनसाइट के लिए अनुपमा मिश्रा से गुरबीर सिंघ चावला की विशेष बातचीत।
संगीत और गायन आपका सिर्फ शौक या इसकी विधिवत शिक्षा आपने ली है। संगीत के प्रति आपका पारिवारिक माहौल कैसा था?
संगीत बचपन से ही मुझे आकर्षित करता रहा है। इस विधा में घर में कोई नहीं था। हमारा पारिवारिक माहौल शिक्षा पर ज्यादा केन्द्रित था। अपने खानदान में मैं पहली हूं जो इस विधा में आगे निकली और उसकी विधिवत शिक्षा हासिल की। परिवार में ज्यादातर डॉक्टर्स और इंजीनियर्स हैं। शौक के तौर पर मैंने संगीत का सफर शुरू किया जो निरंतर जारी है।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के क्षेत्र में आपकी पहली ऐसी कौन सी फिल्म थी जिससे आपको पार्श्व गायिका के रूप में पहचान दिलाई?
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लिए काफी समय पहले से मैंने गाना शुरू कर दिया था। जहां तक अपनी पहचान और अच्छे बैनर की बात करूं तो यह फिल्म ‘मया’ थी। यह फिल्म निर्देशक सतीश जैन जी की थी। इसमें देवरानी और जेठानी के दो रोल थे। उसमें देवरानी के जो गीत थे वो मैंने गाए थे। मैं यह कह सकती हूं कि इस फिल्म ने मुझे पार्श्व गायिका के रूप में पहचान दिलवाई। सिनेमा के लिए जो आवाज़ होनी चाहिए उसके लिए मुझे पहचान मिली।
फिल्मों की सफलता में संगीत एक महत्वपूर्ण पहलू होता है। यहां की लोक संस्कृति और संगीत का छत्तीसगढ़ी फिल्मों में कैसा उपयोग हो रहा है?
किसी भी फिल्म की सफलता और असफलता में संगीत का बहुत बड़ा श्रेय म्युजिक को जाता है। किसी भी प्रोडक्ट का बिकना उसकी पैकेजिंग पर निर्भर करता है। संगीत एक तरह से फिल्म की पैकेजिंग ही है। दर्शकों के लिए फिल्म का संगीत पहला आकर्षण होता है। फिल्म की रिलीज़ से पहले उसका संगीत लाँच किया जाता है ताकि उसकी लोकप्रियता दर्शकों को फिल्मों की ओर खींचकर ले आए। यहां के फिल्मकार छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति को निरंतर बेहतर तरीके से प्रदर्शित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं और सफल हो रहे हैं। संगीत के लिए छत्तीसगढ़ी फिल्मों में बहुत संभावनाएं हैं। इसका भविष्य बहुत सुनहरा है। बहुत प्रतिभाशाली लोग इंडस्ट्री से जुड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ की फिल्मों के संगीत में ऐसी ताकत है जो सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।
पिछले दिनों प्रदर्शित फिल्म ‘ले शुरू होगे मया के कहानी’ का संगीत बेहद लोकप्रिय हुआ। इस फिल्म के गाने लोगों के दिलों में बस गए हैं। इस फिल्म के संगीत की सबसे बड़ी विशेषता आपको क्या लगी?
यह सतीश जैन की फिल्म है। इसके सभी गीत कर्णप्रिय हैं। सतीश जी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे प्रयोग करने से पीछे नहीं हटते और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को साथ लेकर चलते हैं। ‘ले शुरू होगे मया के कहानी’का संगीत लाजवाब बना है। मैं अपने आपको लकी मानती हूं कि उनकी फिल्मों में मुझे गाने के अवसर मिलते रहे हैं। मुझे इस बात की खुशी है कि मैं उनकी पसंद में शामिल हूं। सुनील सोनी जी के साथ मैने काफी काम किया है जो इस फिल्म के संगीतकार हैं। उसके साथ काम करने का एक कम्फर्ट लेवल भी है। इस फिल्म के गानों में ऐसा आकर्षण है जिन्हें छत्तीसगढ़ी भाषा नहीं आती है वे भी इसकी धुनों से प्रभावित होते हैं और इसके गीत गुनगुनाते हैं। इस फिल्म के संगीत में छत्तीसगढ़ की माटी की खुशबू है। इस फिल्म के गानों में हमेशा एक नयापन लगता है। इस फिल्म के एक गीत ‘जाना जाना हे ना’ के लिए मुझे बेस्ट फीमेल सिंगर का अवार्ड भी मिला है।
आप एक बैकिंग प्रोफेशनल हैं। प्रोफेशनल कार्यों के दायित्वों
के साथ-साथ संगीत का तालमेल आप कैसे बिठा पाती हैं?
प्रोफेशन और संगीत दोनों से मैं बहुत लम्बे समय से जुड़ी हुई हूं। संगीत और प्रोफेशन दोनों ही मुझे प्रिय हैं। संगीत की जहां तक बात है तो संगीत मुझे हमेशा एक नई ऊर्जा देता है। रविवार का दिन विशेषकर संगीत की साधना के लिए रखती हूं क्योंकि मेरी आवाज़ ही पहचान है इसलिए संगीत का निरंतर रियाज जरूरी है। दर्शकों का प्यार मुझे लगातार मिल रहा है। इसलिए यह मेरी दायित्व भी है कि मैं उनकी उम्मीदों को पूरा करूं। जहां तक प्रोफेशन और संगीत में तालमेल की बात है उसके लिए कुछ जरूरी बातों का पालन करना होता है। सबसे पहला है अनुशासन, मैं अनुशासित होकर रहना पसंद करती हूं और अपने साथ के लोगों से भी यही अपेक्षा रखती हूं। दूसरी बात है ‘कसीसटैन्सी’। कार्य की निरंतरता आपको सफल करने में सहायक होती है। तीसरी महत्वपूर्ण बात है ‘प्रोसेस।’ विभिन्न कार्यों को अच्छे से करने के लिए सही ‘प्रोसेस’ की जरूरती होती है। अगर हम इन बातों का अपने जीवन में पालन करते हैं तो विभिन्न कार्यों में बेहतर तालमेल बिठाया जा सकता है।
एक गायिका के रूप में आपका अपना पसंदीदा गाना कौन-
सा है?
काफी फिल्मों में मुझे गाने का मौका मिला है। फिल्म ‘हंस झन पगली फंस जाबे’ का एक गाना था ‘ए मोर जहुरिया’ मेरे पसंदीदा गानों में से एक है। इस गाने के लिए मुझे पर्दे पर भी आने का मौका मिला और दर्शक मुझे पहचानने लगे। पुरानी फिल्मों की बात करें तो ‘मया’ फिल्म का एक गाना बहुत पापुलर हुआ था ‘ए पीरित वाली रानी’ मितान-420 फिल्म का गाना था ‘का बान मारे रे’ भी बहुत हिट हुआ था। एक और लव स्टोरी का गाना ‘पिया रे जिया रे’, लैला टीपटॉप छैला अंगूठा छाप का एक गाना इंग्लिश में मैने गाया था, वह भी बहुत हिट हुआ । ‘मेरी मां कर्मा ’ फिल्म में मेरा गाया हुआ गीत बहुत पापुलर हुआ। ‘मोर छईया भुईयां-2’ में मैंने चार गाने गाए हैं जो हिट हो चुके हैं।
ऐसा देखा गया है कि कुछ फिल्मों का संगीत बहुत अच्छा बना पर फिल्में सफल नहीं हो पाई। इसके क्या कारण आप मानती हैं?
केवल कर्णप्रिय संगीत फिल्म को हिट कर सकता है ऐसा सोचना ठीक नहीं। आजकल मार्केटिंग का जमाना है। आपको प्रोडक्ट की मार्केटिंग कैसी हुई है इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है। फिल्म के कई पहलू होते हैं। सभी पहलुओं में काम श्रेष्ठ होना चाहिए। फिल्म के डायरेक्टर का अपनी टीम के साथ कैसा तालमेल है यह भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। फिल्म की सफलता में पूरी टीम का योगदान होता है। नि:संदेह संगीत पक्ष की एक अलग ही अहमियत होती है।
छत्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री में बहुत से नए गायक आ रहे हैं उनमें कैसी संभावनाएं आप देखती हैं?
मेरा सौभाग्य है कि मुझे गोरेलाल बर्मन, दिलीप षडंगी, लक्ष्मण मस्तुरिया, दुकालू यादव जैसी हस्तियों के साथ गाने का मौका मिला। जो नए गायक आ रहे हैं उनके साथ भी गाने गा रही हूं। मैं ईश्वर का धन्यवाद और अपने सुनने वालों का आभार व्यक्त करती हूं मुझे लगातार अपना प्यार दे रहे हैं। नए गायक बेहद प्रतिभाशाली हैं और मल्टीटैलेन्टेड हैं। वे अच्छा गाते भी और अच्छा एक्ट भी कर रहे हैं। उन्हें पता है कि अपने आपको कैसे प्रेजेन्ट करना है। नए गायकों को अपनी तरफ से संदेश देना चाहूंगी कि कैरियर में कई उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। अपना हौसला बनाकर रखें और स्वर साधना, रियाज करते रहें। अपनी कला का ईगो न पालें, विनम्र रहें। एक आर्टिस्ट अपने स्वभाव के कारण भी जाना जाता है। अच्छा गाने के साथ अच्छा सुनना भी जरूरी होता है। अपने सीनियर गायकों का मान-सम्मान करें। नए गायक मल्टीटैलेन्टेड हैं। मेरी शुभकामनाएं उनके साथ हैं।
संगीत आपके जीवन में क्या मायने रखता है?
संगीत मेरी आत्मा मिली। संगीत मुझे हर मायने में पूरा करता है। संगीत की साधना मुझे बहुत संतुष्टि देती है। मैं अपने संगीत के सफर में अब तक की सफलता को ईश्वर को समर्पित करती हूं और अपने परिवार वालों का आभार व्यक्त करती हूं कि उन्होंने संगीत के सफर में हर पल मेरा साथ दिया और किसी भी बात के लिए बाधित नहीं किया।
छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री और अच्छे से तरक्की करे, इसके लिए क्या प्रयास होने चाहिए?
जहां तक फिल्मों के निर्माण की बात है तो यह इंडस्ट्री निरंतर प्रगति कर रही है। फिल्मों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है और कलाकार भी बड़ी संख्या में बढ़े हैं। मुझे एक बड़ी कमी यह लगती है कि कलाकारों के हितों के लिए कोई एसोसिएशन यहां पर नहीं है। कुछ एसासिएशन हैं भी तो सक्रिय नहीं है और कलाकारों को इसका पता नहीं है। हमारी इंडस्ट्री में एक ऐसे एसोसिएशन की जरूरत है जिसकी बागडोर परिपक्व लोगों और सोशली एक्टिव लोगों के हाथ में हो। किसी भी इंडस्ट्री को सुव्यवस्थित रखने के लिए कोई न कोई एसोसिएशन निश्चित रूप से होता है। छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे बहुत सारे कलाकार हैं जिनकी आजीविका सिर्फ फिल्मों पर ही निर्भर रहती है उनके पास कमाई का और दूसरा साधन नहीं होता। जब भी किसी कलाकार या टेक्नीशियन को स्वास्थ्य से संबंधित गंभीर दिक्कतें आती हैं तभी फंड के लिए प्रयास शुरू किए जाते हैं वह भी पूरी तरह से सफल नहीं हो पाते। छत्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री की ग्रोथ तभी अच्छे से होगी जब कलाकारों के हितों की रक्षा और मुसीबत में उनका साथ देने वाला कोई अच्छा एसोसिएशन होगा। इसके लिए सार्थक प्रयास किए ज़रूरी हैं।