जीवनमंथन

जीते तो उपलब्धि, हारे तो अनुभव -द आर्ट आफ लीवींग

 

शांति और खुशी के पल संयमित मन से शुरू होते हैं जो कि नियमित अभ्यास से ही संभव है।

 

डॉ. प्रज्ञा कौशिक

 

डॉ. प्रज्ञा कौशिक मीडिया एजुकेटर हैं

 

हिसार में सरकारी विश्वविद्यालय, कॉलेज और पॉलिटेक्निक में संचार कौशल, जन संपर्क विषय में विजिटिंग फैकल्टी के रूप में अपनी सेवाएं देती हैं।

 

वे CSR से डिजिटल सेफ्टी मेंटर के रूप में जुड़ी हुई हैं। वे Google मीडिया साक्षरता प्रशिक्षक के रूप में कार्यशालाएं आयोजित करती हैं। इससे पहले उन्होंने जीजेयू हिसार के मास कॉम विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में काम किया।AIR हिसार और कुरूक्षेत्र में उद्घोषक का कार्य कर चुकी हैं।

 

वे विभिन्नन वेब पोर्टलों, मैगज़ीन और समाचार प्लेटफार्मों के लिए समसामयिक लेख लिखती हैं। मीडिया साक्षरता के विशेषज्ञ रूप में व्याख्यान और कार्यशाला आयोजित करती हैं।

द आर्ट ऑफ लीवींग यानि कि “छोडना सीखना” भी एक कला है, यह जानना मानना कि जिन्दगी एक अमूल्य उपहार है और उसे महफूज रखने के लिए हमारा प्रत्येक प्रयास अनिवार्य है उस प्रयास में कभी कभी ‘ना’ कहना और कुछ बातों, आदतों स्थितियों को छोडना भी पड़ता है जैसे कि डर को छोड़ कर उम्मीद की ओर, संयम और जिन्दगी की ओर बढना, हर नकारात्मकता को छोड़ना,अति को छोड़ना,समय के पीछे भागना छोड़ना, भूतकाल की उपलब्धि के नशे की निष्क्रियता को छोड़ना।

 

कोविड काल ने में वर्तमान परिस्थितियों , दृष्टिकोण, समस्याएं और समाधान के तरीके बदल दिये हैं। पुराने तौर तरीके जीने, रहने, पढ़ने और काम करने के बदल दिए हैं और ‘आराम की जिन्दगी’ को छोडना आज स्वस्थ रहने के लिए सर्वथा अपेक्षित भी है। कोविड के दौरान हमने देखा है कि कैसे बहुत से लोगों के हाथों से जिन्दगी रेत की तरह फिसल रही थी और पल पल जिन्दगी और मौत की जंग का डर कायम था, अभी भी डर हमारे अंदर जगह बनाए हुए है पर साथ ही दृढ़ निश्चयी मन लडने को तैयार भी है। अपनों को सलगभग भी ने खोया, दर्द सहा परन्तु आगे सजग और सुरक्षित रहना भी जरूरी है। हर दिन, हर पल कीमती है और इसे सावधानी से सहेजना भी उतना ही कठिन काम है पर नामुमकिन नहीं।

हम आज महसूस करते हैं कि इस फास्ट ट्रैक तकनीक से प्रेरित युग में मनुष्य चांद पर तो है पर मन की शांति आज भी उसे परम ध्येय -सी महसूस होती है। शांति और खुशी के पल संयमित मन से शुरू होते हैं जो कि नियमित अभ्यास से ही संभव है।

 

हमने कोविड के दौरान कई सबक भी सीखे जैसे परिवार, रिश्ते, दोस्त, जिन्दगी के प्रति सावधानियां, प्रकृति के साथ संतुलन, करुणा का जीवन पर प्रभाव, सहायता करना, आगे बढ़ना, सीखना, आत्म प्रतिबंध,आत्मनिरीक्षण और सभी से सहानुभूति, यह सब एक सुखी और शांत जीवन जीने के माध्यम हैं। जिसके लिए हम सभी मिलकर कई जरूरी स्थितियों और शर्तों का पालन भी कर रहे हैं। मेरा घर, मेरा पैसा, मेरा सब कुछ, सब मेरा परन्तु जो महत्वपूर्ण था वो था, मेरा परिवार, दोस्त, समाज देश, दुनिया सुरक्षित रहें, सर्वे सुखिनः भवन्तुः।

मैं, मेरा के भाव को छोड कर हम हमारा को अपनाना, आज की स्थिति है इसके लिए हम अपने अंदर सकारात्मकता के प्रवाह को बाधित करने वाले बुरे विचार को दूर करना सिखने का प्रयास करें। उन विचारों को छोड़ दें जो आपको आगे बढ़ने से रोकते हैं। अपने आप को ऐसे लोगों से दूर रखें जिनके अहितकारी, बुरे इरादे आपके सामाजिक और नैतिक रूप से सकारात्मक, प्रगतिशील कार्यों में बाधा बन जाते हैं। सभी बिना विचारे अपरिक्वतापूर्ण कार्यों को नहीं कहना भी सीखें। केवल आपको ही अपने आप को खुश रहने या न रहने का अधिकार है, यह दूसरे भी समझें। तारत्मय, तालमेल, तर्कसंगत होना ये सभी जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन हमने वियोग का भी अनुभव किया है, परन्तु भूलना और अस्वीकार करना एक खुशहाल और संघर्षपूर्ण जीवन जीने के लिए ‘छोड़ने की कला ‘हैं। वो सब कारक जो इस जिन्दगी को जीने में बाधक बने उन्हें छोड़ कर जीवन की ओर हमारा रूख ही हमें आगे आने वाली समस्याओं से निबटने में सहायता करेगा। आगे बढ़ें, जीवन में आपको देने के लिए बहुत कुछ है, जीवन एक उम्मीद की किरण है।

 

आपकी ईमानदारी, समर्पण और चेतनता हमेशा हैप्पी यू के लिए नए रास्ते खोलती हैं क्योंकि शांति चाहना- पाना एक दैनिक, साप्ताहिक, मासिक अनुभूति है। धीरे- धीरे विचारों को बदलना, धीरे-धीरे पुरानी रूढियों को छोडना, सरलता से नए युग में अपने आप को ढालना आर्ट आफ लीवींग से आर्ट आफ लिविंग का सफर है।

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