अनुभव से बड़ी उपलब्धि और कुछ नही
असंगठित समाज में महिलाओं को संगठित करना ही सबसे बड़ा महिला सशक्तिकरण है। महिलाएं आत्मनिर्भर हों, शिक्षित हो। वास्तविक महिला सशक्तिकरणा का रास्ता महिलाओं के आत्मनिर्भर होने से खुलता है।
शुभ्रा शुक्ला मिश्रा
मुख्य कार्यपालन अधिकारी, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश
नीति आयोग, शिक्षा एवम रोज़गार प्रभाग
एंकर
मीडिया पर्सनैलिटी
उपलब्धियां
गुजरात विधानसभा अध्यक्ष द्वारा कला में विशेष योगदान हेतु सम्मानित।
पूर्व शिक्षा मंत्री श्री उमेश पटेल द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में सम्मानित।
परशुराम सेना(उत्तरप्रदेश माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी जी के नेतृत्व में संचालित) मध्यप्रदेश उपाध्यक्ष।
लखनऊ परशुराम सेना विंग द्वारा समाजसेवा के क्षेत्र में सम्मानित।
खेल एवम युवा मंत्रालय द्वारा यूनाइटेड नेशंस हेतु चयनित अंतर्राष्ट्रीय वालंटियर (यूनाइटेड नेशंस के समाज हित के प्रोजेक्ट्स क्रियान्वयन हेतु)
लायंस क्लब रायपुर द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में सम्मानित।
नई दिल्ली में स्किल डेवलपमेंट में क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए विमन लीडरशिप अवार्ड से सम्मानित।
आपने अपने शैक्षणिक कैरियर में विविध उपलब्धियां हासिल की हैं। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आपकी शैक्षणिक योग्यताओं के बारे में जानना चाहेंगे।
अपनी स्कूली पढ़ाई गृह ग्राम मांढर में पूरी करने के बाद मैने स्नातक बीएससी कम्पयूटर साइंस की डिग्री गर्ल्स कॉलेज रायपुर से हासिल की। मैने स्नातकोत्तर दो भाषाओं में एम ए इंग्लिश (पंडित रविशंकर यूनिवर्सिटी) व एम ए हिंदी (डॉ राधाबाई नवीन गर्ल्स कॉलेज, रायपुर) से पूरी की। इसके साथ ही मैने बी एड महात्मा गांधी कॉलेज रायपुर से किया। अब पीएचडी की तैयारी पर हूं।
अपने शैक्षणिक काल में और आज की हाई-टेक शिक्षा की तकनीकों में तुलनात्मक रूप से आप क्या अंतर महसूस करती हैं। ऐसी क्या विशेषताएं हैं जो आपने अपने अध्ययन के दौरान सीखी जो आज की तकनीकों में नहीं हैं?
बहुत अंतर है। पहले सैद्धांतिक विषयों पर अधिक ज़ोर दिया जाता था, लेकिन आजकल स्कूलें प्रयोगवाद पर ज्यादा फोकस करती है। स्कूलों में कंप्यूटर की शिक्षा और विभिन्न ट्रेंडो में व्यवसायिक शिक्षा भी दी जा रही है। तकनीकी शिक्षा पर भी जोर है। लेकिन पहले ऐसा नहीं था। एक दो दशक पूर्व की अगर बात करें तो सैद्धांतिक विषयों पर ही जोर दिया जाता था। प्रयोगशालाएं थी, पर केवल विज्ञान विषयों के लिए। आजकल स्मार्ट क्लासेज होती है।आजकल छात्र किसी चित्र को 3डी डाइमेंशन के माध्यम से देख सकते हैं, वर्चुअली ब्रह्माण्ड के दर्शन कर सकते हैं और बहुत कुछ सीख सकते हैं। पहले ऐसा नही था।
उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद आपका प्रोफेशनल कैरियर कहां से शुरू हुआ। विभिन्न पड़ावों को पार करने में क्या चुनौतियां आपके सामने रहीं?
चुनौतियां तो बहुत रहीं पर जब आपको अपना लक्ष्य सामने दिखाई दे तो रास्ते में आने वाली चुनौतियों को भी हम हंसते खेलते निकाल दिया करते हैं। सही समय,सही उम्र पर यदि आपको सही मार्गदर्शन मिल जाए तो आप आसमां छू सकते हैं और सही मार्गदर्शन न मिल पाना आपको बहुत पीछे ले जाता है।
ईश्वर की कृपा से परिवार, सही लोग और सही मार्गदर्शन के साथ ही मेरा प्रोफेशनल करियर शुरू हुआ। बचपन से ही आकाशवाणी दूरदर्शन में चयनित होकर अपनी आवाज़ राज्य व देश में गुंजायमान करने की इच्छा थी। ग्रेजुएशन तक तो पूरी तरह से पढ़ाई में लगने के बाद आकाशवाणी और दूरदर्शन में चयनित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसके साथ ही शौक की वजह से ही कुछ ट्रैफिक सिग्नल फाउंडेशन में निःशुल्क अपनी आवाज़ भी दी। न्यूज चैनल में भी एक एंकर के रूप में कार्य किया और इस दौरान बहुत से अनुभव अपने अंदर समेटे जो मेरे आने वाले भविष्य में बहुत काम आयेंगे। इस दौरान बहुत से दिग्गज नेताओं और वरिष्ठ लोगों से मिलना और उनका साक्षात्कार लेने का अवसर मिला जिससे कई विषयों पर बातचीत और अनुभव साझा हुए। इसी दौरान एक मूवी “आई एम मोदी” में बतौर अभिनेत्री एक आईएएस ऑफिसर के किरदार को निभाने का अवसर मिला। ये मूवी आप ओटीटी प्लेटफार्म में देख सकते हैं। इसके बाद वर्तमान कार्यस्थल से जुड़ी जो सीधा पब्लिक सेक्टर से जुड़ा हुआ है,जो मुझे प्रत्यक्ष रूप से लोगों से जोड़ता है। और लोगों से (बच्चों, महिलाओं) जुड़ना मेरा पैशन है क्योंकि इससे मैं उन्हें उन बेहतर सुविधाएं को प्रदान करने की कोशिश करती हूं जिसका उन्हें अधिकार है। और सबसे चुनौती तो लोगों से जुड़ना ही है क्योंकि आज कल लोग खासकर ग्रामीण अंचल की महिलाएं जागरूक नहीं हैं। ऐसे में उन्हें बेहतर रोजगार और आत्मनिर्भरता के लिए प्रेरित करना ही सबसे बड़ी चुनौती है।
आपने अपने शैक्षणिक करियर में हिंदी और इंग्लिश दोनो में एमए किया है। कौन सी भाषा आपको ज्यादा प्रिय है। दोनो भाषाओं की अपनी क्या विशेषताएं हैं?
बेहिचक हिंदी कहूंगी। मेरा मानना है की हिंदी से बेहतर भाषा कोई हो ही नही सकती। बेशक दूसरी भाषाओं की अपनी अलग खुबसूरती है पर हिंदी का स्थान विशिष्ट है। हिंदी के शब्दों और भावों को प्रकट करने में हिंदी की जो खूबसूरती है वो किसी और भाषा में होना असम्भव है। हिंदी और इंग्लिश की विशेषता की बात करें तो हिंदी मनुष्य की आत्मा है और इंग्लिश व्यक्ति की जरूरत। न आत्मा त्यागी जा सकती है और न ही जरूरत नजरंदाज की जा सकती है।
आप संयुक्त परिवार में पली बढ़ी हैं। क्या जीवन मूल्य आपको मिले हैं। आजकल की युवा पीढ़ी माता पिता की अहमियत नहीं समझती उन्हें बोझ समझती हैं। उनसे आप क्या कहना चाहेंगी?
आप किसी भी विशिष्ट स्थान या ओहदे में पहुंच जाएं लेकिन माता पिता, जब आप कुछ नही थे तब भी और जब आप कुछ हैं तब भी आपके आत्मबल रहे हैं। माता पिता का किसी व्यक्ति के जीवन में उनकी भूमिका और उनके अस्तित्व पर प्रश्न करना, ठीक वैसे ही है जैसे आप ईश्वर के होने और न होने पर प्रश्न उठा रहे हैं क्योंकि मनुष्य का संबल केवल माता पिता से ही है। उनके बिना जीवन शून्य है। हम आज जहां भी है उसमे माता पिता का ही योगदान है। कहते है जब बच्चा स्कूल जाता है तब केवल बच्चा ही स्कूल नहीं जाता, माता-पिता भी उसके साथ प्रौढ़ होने तक शैक्षणिक यात्रा को पूरी करते हैं। बाकी नैतिक उत्थान में माता पिता का ही सबसे बड़ा योगदान होता है। इसलिए आज की पीढ़ी को ये समझना होगा कि जब आप शून्य थे तब आपकी शून्य से शिखर तक की यात्रा में आपके पीछे माता-पिता ही थे। उन्होंने ही आपको संबल प्रदान किया।
प्रोफेशन और परिवार में आने वाली चुनौतियों को आपने किस रूप में स्वीकारा। संघर्षमयी जीवन में चुनौतियों से आपका कैसा नाता रहा?
चुनौती बहुत थी। प्रोफेशनल और पारिवारिक जीवन में तालमेल बिठाना बेहद मुश्किल है। कभी कभी ऐसा समय आता है जब परिवार में आपकी जरूरत होती है पर कर्तव्य का बोध उस जरूरत को त्याग देता है और हमे अपने काम की ओर ध्यान देना होता है। परिवार में तो केवल 4-5 सदस्य होते हैं पर कर्मक्षेत्र से कई परिवार जुड़े रहते हैं। इस तरह से पब्लिक सेक्टर में लोक कल्याण की जो जिम्मेदारी होती है उस चुनौती के आगे पारिवारिक समस्या गौण हो जाती है। एक स्त्री के लिए तो ये और भी कठिन है क्योंकि स्त्री को घर में मैटरनिटी पीरियड से गुजरना होता है भले ही वो किसी भी पद में हो। मैटरनिटी पीरियड में परिवार को संतुष्ट करते हुए परिवारिरिक जिम्मेदारी निभाते हुए अपने कर्मक्षेत्र के कर्तव्यों का पालन करना बेहद कठिन है पर विवाह से पहले मेरे पेरेंट्स और विवाह के बाद मेरे मदर-फादर इन लॉ मेरे सबसे बड़े सहायक हैं।आज मैं जो भी हूं इन चार के कारण ही हूं।
मैने अपने बेटे के जन्म के पहले डॉक्टर द्वारा दो महीने के बेड रेस्ट दिए जाने पर भी बेड पर ही रहते हुए अपना काम किया है क्योंकि वो समय ऐसा था जब छत्तीसगढ़ में प्रोजेक्ट वर्क चरम पर था । ऐसे में मेरा छुट्टी पर जाना राज्य में प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन पर बेहद नकारात्मक प्रभाव डालता। इसलिए मैने बेटे के होने के पहले और शायद आप विश्वास न करें पर बेटे के जन्म के दो दिन बाद हॉस्पिटल से ही अपना वर्क किया और लगभग एक महीने में ही अपना काम खत्म करके फिर छुट्टी ली। परिणाम ये था कि मेरे क्षेत्र छत्तीसगढ़ के परिणाम सर्वश्रेष्ठ थे। विषम परिस्थितियों में भी अपने कार्य को तन्मयता से करने हेतु मुझे छत्तीसगढ़ सहित मध्यप्रदेश प्रभार दिया गया। और अभी वर्तमान में मैं इन दोनो राज्यों का प्रभार संभालती हूं।
जब एक स्त्री मां बनती है तब यह समय बहुत नाज़ुक होता है। मेरी पूरी मैटरनिटी जर्नी में मैंने पूरे नौ महीने काम किया, सात महीने तक बाहर दूसरे राज्यों के प्रोफेशनल दौरे भी किए, सैकड़ों अलग अलग जिलों की कलेक्टोरेट में बैठक में शामिल हुई और बच्चे के जन्म के बाद भी अपना कार्य जारी रखा, मैं मानती हूं कि इस दौरान सहनशक्ति और आत्मबल मुझे मेरे बेटे ने गर्भ से ही दिया। मैं बच्चे की दैनिक दिनचर्या से निवृत्त होकर अपना काम करती। मेरी मां और मेरी मदर इन लॉ मेरी सबसे बड़ी सहायक रही हैं। आज समय और जमाना कहीं भी पहुंच जाए एक स्त्री का जीवन हमेशा परिवार और अपने कर्मक्षेत्र के बीच झूलता ही रहेगा और वो बखूबी अपनी जिम्मेदारियां निभाती भी रहेगी। शायद इसलिए ही स्त्री का दर्जा ईश्वर ने भी सर्वोपरी रखा है।
प्रतिभा सम्मान योजना संप्रत्त नीति आयोग के शिक्षा और सांस्कृतिक अनुभाग में आप छत्तीसगढ मध्यप्रदेश की मुख्य कार्यपालन अधिकारी हैं। आपके दायित्वों में आपकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राथमिकताएं क्या हैं?
निश्चय ही शिक्षा। खासकर छत्तीसगढ़ के दूर सुदूर क्षेत्रों में और इसलिए शायद मैने इसे चुना भी। एक बच्चा शिक्षित होगा तो एक समाज शिक्षित होगा और शिक्षित समाज ही देश को नैतिक दिशा दे सकता है। जैसा हम कहते है भारत विश्व गुरु बनने की दिशा में है, यह दिशा शैक्षणिक उपलब्धि के बिना हासिल नहीं हो सकती। आज भी बहुत सी लड़कियां स्कूल से वंचित है। धनाभाव के कारण प्रतिभाएं पल्लवित नही हो पाती। उन प्रतिभाओं को पल्लवित करने में यदि मेरी भूमिका है तो मैं स्वयं को भाग्यशाली समझती हूं।
अपनी प्रोफेशनल यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि आप क्या मानती हैं?
ब्यूरोक्रेसी की चुनौतियों को समझने का ये बहुत अच्छा अवसर था। विगत दो दशक से अलग अलग राज्यों के करीब सौ से अधिक डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर, दर्जनों संभागीय कमिश्नर के साथ काम करके एवं प्रोफेशनल भेंट से बहुत कुछ सीखने को मिला। कई बार ऐसे भी अनुभव मिले कि जिसमें समझ आया कि ब्यूरोक्रेसी पर सरकार बहुत ज्यादा हावी रहती है। अनुभव से बड़ी उपलब्धि और कुछ नही। ये अनुभव ही एक दिन जुड़कर एक बहुत बड़ी उपलब्धि का स्वरूप धारण करते हैं। अपने प्रोफेशनल करियर की शुरुवात से लेकर अभी तक मुझे मिले हर अनुभव मेरे लिए सबसे बड़ी उपलब्धियां हैं। इसके साथ ही हर छोटी सी छोटी और बड़ी से बड़ी उपलब्धि भी मेरे लिए बेहद मायने रखती है और सदैव मेरे लिए मेरे हृदय के करीब है।
यूनाइटेड नेशंस से अंतर्राष्ट्रीय वोलेंटियर का सम्मान मिला वो क्षण भी आत्मश्लाघा से परिपूर्ण था, क्योंकि इससे मैं यूएन के पब्लिक सेक्टर, रोजगार और स्वास्थ्य संबंधी प्रोजेक्ट्स की अध्यक्षता और इन कार्यों का क्रियान्वयन भारत में कर सकती हूं।
आपके सृजनात्मक व्यक्तित्व में एंकरिंग, नृत्य, अभिनय, पत्रकारिता और सम्पादन जैसी कला समाहित हैं। इनमें से कौन सी विधा से आपको ज्यादा लगाव रहा है?
नृत्य तो मेरी आत्मा में बसा है ये मेरा बचपन से ही एक बेहद पसंदीदा शौक रहा है। पत्रकारिता बहुत पसंद रही है। इसमें आप खुलकर आवाज उठा सकते हैं, लेकिन आज के समय में ये बेहद कठिन है। आज के समय में सच बोलना उतना ही कठिन है, जितना कि सच ढूंढ कर लाना।
आप महिला सशक्तिकरण की प्रतीक हैं। वास्तविक महिला सशक्तिकरण क्या है, इसे किस रूप में परिभाषित करना चाहेंगी?
असंगठित समाज में महिलाओं को संगठित करना ही सबसे बड़ा महिला सशक्तिकरण है। महिलाएं आत्मनिर्भर हों, शिक्षित हो। वास्तविक महिला सशक्तिकरणा का रास्ता महिलाओं के आत्मनिर्भर होने से खुलता है। शिक्षित स्त्री शिक्षित संतान के साथ के साथ शिक्षित समाज का निर्माण करती है। प्रदेश में आज भी महिलाएं रूढ़िवादी विचारधारा बाल विवाह अशिक्षा स्वास्थ्य कुपोषण (सिकलसेल)का शिकार है। सरकार के कई प्रयासों के बाद भी कई जगह गर्भावस्था के दौरान एक कुशल पोषण नहीं मिल पाता।
छत्तीसगढ और मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के सशक्तिकरण और उन्हे रोज़गार देने की पहल में आप कितनी सफल हो पाई हैं?
सफलता मिली लेकिन संतोष नहीं मिला। क्योंकि ये बहुत लंबी यात्रा है। क्योंकि आप जितना इस यात्रा में बढ़ते जाएंगे, उतनी ही चुनौतियां आपके सामने आएंगी। ग्रामीण अंचलों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। हम आज आदिवासी विकास की सिर्फ बात करते हैं। वास्तव में आदिवासी विकास, विकास के मानकों में बहुत दूर है। छत्तीसगढ़ में महिलाओं की संघर्षशील मुद्रा में तस्वीरों को दीवारों में लगाने में हम बहुत गौरवान्वित होते है लेकिन ये छत्तीसगढ़ की संस्कृति का हिस्सा नहीं है। आवश्यकता है बदलाव की। बस्तर सुकमा बालाघाट मंडला जैसे कई दूर सुदूर क्षेत्रों में महिलाओं को अच्छा स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, सामाजिक कुरीतियों की चुनौतियों से निपटने मे बहुत संघर्ष करना पड़ता है।
आपको उत्कृष्ट कार्यों के लिए विभिन्न पुरक्कार मिले हैं। ये पुरस्कार आपके लिए क्या मायने रखते हैं?
यात्रा बहुत लंबी है। फिर भी मिलने वाले प्रोत्साहन ऊर्जा का संचार करते हैं और लक्ष्य तक पहुंचने में सहायक होते हैं। सम्मानित होना गौरव का विषय है और अच्छा भी लगता है, लेकिन असल मायने में प्रसन्नता तब होगी जब हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे और लोगों के लिए कुछ कर पाएंगे। जो कार्य मैं कर रही ही उसमें मेरे लिए लोगो की प्रसन्नता मायने रखती है। और लोगो के लिए ही काम करना है।
जहां एक ओर हम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं,वहीं दूसरी ओर कामकाजी महिलाएं अपने ही कार्यक्षेत्र में स्वयं को असुरक्षित महसूस करती हैं। विगत दिनों कोलकाता में इंटर्न डॉक्टर के साथ हुआ रेप और बर्बर हत्या एक उदाहरण है। त्वरित न्याय और रेपिस्टों को कड़ी सजा देने के लिए क्या सख्त कदम उठाए जाने चाहिए। कामकाजी महिलाओं से क्या अपील करना चाहेंगी?
कलकत्ता में हुई घटना दिल दहला देने वाली थी और सिर्फ यही नहीं बल्कि इस घटना जैसी कई ऐसी घटनाएं हैं जो आज के समय में लोगों के मनुष्य होने पर भी सवाल उठाती हैं। धिक्कार है ऐसी सोच और कृत्य वाले लोगों पर जो महिलाएं ,लडकियां और यहां तक 6 महीने की छोटी बच्चियों को भी अपनी घटिया मानसिकता का शिकार बनाते हैं। कुछ घटनाएं सामने आ जाती हैं पर कुछ लड़कियां और महिलाएं तो कई वर्षों से चुप रहकर भी सहती आती हैं क्योंकि उन्हें समाज का डर होता है। इसलिए सबसे पहले तो हमें ऐसे निकृष्ट लोगों के लिए कठोर होकर, ऐसी महिलाएं जिनके ऊपर ये सब बीत चुका है उनके प्रति अपना नजरिया बदलने की जरूरत है। ऐसे लोगों के लिए सजा फास्ट ट्रैक कोर्ट अधिकतम 30 दिवस तक। इसके बाद सुनवाई सिद्ध होने पर केवल और केवल फांसी।
सुधार की शुरुआत स्वयं से करें, समाज एक दो आदमी से नही बना है, 1.45 बिलियन आबादी में हम रहते है, भाषा, प्रांत, शिक्षा नजरिया सब में अंतर है। बड़ी बड़ी बातें करना समाज को बदलना भाषण में ठीक है, प्रायोगिक रूप से ये आसान नही है। यहां जरूरत है, हमें स्वयं को सुरक्षित रखने की इसलिए तकनीक का प्रयोग करें, मोबाइल लोकेशन, से माता पिता के संपर्क में रहें।कहीं बाहर जाने पर अपने साथ पेपर स्प्रे,चाकू ,धारदार वस्तुएं साथ रखें , मैं स्वयं ऐसा करती हूं क्योंकि मुझे कार्य की बज से दूसरे प्रदेशों,जिलों और बीहड़ इलाकों में भी जाना पड़ता है।हमेशा सतर्क रहें। आंख बनकर किसी पर भी विश्वास न करें।
मेरा व्यक्तिगत मानना है की महिलाओं को शारीरिक रूप से दक्ष होना चाहिए । इसलिए एनसीसी कैडेट्स की तरह, 10_12 कक्षा में लड़कियों की आत्म रक्षा के लिए ट्रेनिंग कैंप लगाना अनिवार्य किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार कदम उठाए।
अपनी अब तक की सफलताओं का श्रेय किसे देना चाहेंगी?
आज जहां हूं, जो कुछ भी हूं और कल जहां रहूंगी,उसका श्रेय मेरे माता पिता और मेरे ससुराल में मेरे दूसरे माता पिता को देना चाहूंगी। इन चार जनों के कारण ही मै अपना घर, बेटा और इसके साथ अपना काम भी बखूबी कर पाने में सक्षम हो पाती हूं। विवाह से पहले माता पिता ने सम्पूर्ण सुख सुविधाओं से युक्त रखा और विवाह के बाद मेरे दूसरे माता पिता ने मुझे कभी ये एहसास ही नही होने दिया कि मैं ससुराल में हूं। जहां ये कहा जाता है कि विवाह के एक लड़की बंधन में बंध जाती है, वहीं मैंने ये बंधन कभी भी महसूस नहीं किया। इन सभी के साथ ही मेरे पति के खुले विचारों ने मुझे कभी भी किसी अवसर को यूंही नही जाने दिया, हमेशा मेरा आगे बढ़कर साथ दिया। मेरी हर उपलब्धि को अपनी उपलब्धि मानकर उन्होंने मुझे कभी पीछे मुड़ने नही दिया। इसके साथ ही मेरे मेंटर जिन्हें मैं वाकशैली और ज्ञान में अपना गुरु मानती हूं डॉक्टर एस के मिश्र सर। हर कठिन परिस्थिति में प्रोत्साहित कर फिर से कर्मपथ पर अडिग रहने की सीख मैने आदरणीय सर से सीखी है।
अपने जीवनसाथी के व्यक्तित्व की कौन सी विशेषताएं आपको प्रभावित करती हैं। क्या अपेक्षाएं हैं उनसे आपकी?
अभिषेक जी ने मेरी हर उपलब्धि को हमेशा से अपना माना है। वे एक प्रोफेशनल बिजनेस मैन है और मेरा काम पब्लिक सेक्टर का है। ऐसे में दोनो में सामंजस्य बिठाना थोड़ा मुश्किल होता है। मेरे दूसरे राज्यों के दौरे के दौरान, वे मां पापा के साथ मिलकर बेटे को संभालते हैं। वे एक सफल बेटे, पति और पिता हैं। इसके लिए मुझे उन पर गर्व है। कभी रोक टोक न करते हुए उन्होंने मुझे पूरे विश्वास के साथ जीवन में आने वाले हर अवसर में खुद को साबित करने के लिए प्रोत्साहित किया है और शायद इसलिए ही आज मैं यहां हूं। इसके लिए मैं उनकी शुक्रगुजार हूं। और रही अपेक्षाओं की बात तो रिश्तों में अपेक्षाएं जितनी कम रहें, रिश्ते उतने सुदृढ़ होते हैं। इसलिए मैं अपेक्षा न कर उन्हें उस विश्वास का परिणाम देने में ज्यादा भरोसा करती हूं जिसमें उन्हें लगता है कि मैं अपने आगामी लक्ष्य तक पहुंच सकती हूं और मैं ये कर सकती हूं।