बेसहारा बुजुर्गों के चेहरों पर मुस्कान लाना मेरा लक्ष्य है
मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानती हूं कि मुझे एक नहीं कई माता-पिता मिले हैं जिनके दुख दर्द मैं बांट सकती हूं और उनके जीवन में खुशियों का प्रकाश कर सकती हूं।
योजना घरत
समाजसेविका
संस्थापिका – स्मित फाउंडेशन मुंबई
Email: [email protected]
Website: www.smitfoundation.org
Contact: +91 9819 376645/9272 226 226
आप स्मित फाउंडेशन की संस्थापिका हैं। इस फाउन्डेंशन की शुरूआत कैसे हुई?
मैं पिछले अट्ठाईस सालों से निराश्रित वृद्धजनों की सेवा कर रही हूं जो गरीब हैं, अनाथ हैं, मानसिक रूप से बीमार हैं और स्वयं को सम्हालने में असमर्थ हैं, ऐसे लोगों की सेवा के लिए मैं समर्पित हूं। इन जरूरतमंद लोगों के लिए स्थायी रूप से निवास बनाना चाहती हूं। स्मित फाउंडेशन की संस्थापिका मैं वर्ष 2017 में बनी। इससे पहले मैं संघर्ष कर रही थी कि संस्था की शुरूआत कैसे की जाए। किसी भी सामाजिक संस्था का रजिस्ट्रेशन कराना होता है इससे भी मैं अवगत नहीं थी। लोगों से जानकारियां लेकर संस्था शुरू करने का प्रयास करती थी पर किन्हीं कारणों से काम रुक जाता था। कभी पेपर वर्क नहीं हो पाता था तो कभी-कभी कमेटी के सदस्य साथ छोड़ देते थे। काफी प्रयासों और संघर्ष के बाद 2017 में संस्था की शुरूआत हो पाई और हमारा स्मित फाउंडेशन अस्तित्व में आया।
स्मित फाउन्डेशन को स्थापित करने की प्रेरणा आपको किनसे मिली?
सबसे बड़ी प्रेरणा तो वे बेसहारा माता-पिता हैं जो बेहद असमर्थ थे और किसी उम्मीद से मेरे पास आए थे। निराश्रित माता-पिताओं की पीड़ा ने मुझे प्रेरित किया कि एक ऐसा घर हो जहां जीवन की लड़ाई हार चुके वृद्धजन जो अपने ही बच्चों द्वारा प्रताड़ित किए गए हों और जिन्हे घर से बेघर कर दिया गया हो उनको एक छत के साथ-साथ नया जीवन जीने की मूलभूत सुविधाएं दी जा सकें। मैं इनकी पीड़ा को बड़ी गहराई से इसलिए समझ सकती हूं क्योंकि मैं स्वयं भी एक अनाथ आश्रम में पली बढ़ी हूं। आश्रम में रहने वाले सभी जरूरतमंद वृद्धजन मेरे अपने माता-पिता हैं। मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानती हूं कि मुझे एक नहीं कई माता-पिता मिले हैं जिनके दुख दर्द मैं बांट सकती हूं और उनके जीवन में खुशियों का प्रकाश कर सकती हूं। निराश्रित माता-पिताओं के चेहरों पर मुस्कान लाना मेरा लक्ष्य है। संस्था के रूप में उनको एक कवच देना मेरी सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
जीवन में आने वाली कठिनाईयों को किस रूप में आप स्वीकारती हैं। कठिनाईयां आपको व्यथित करती हैं या हौसला बढ़ाती हैं?
बचपन से ही कठिनाईयां मेरे जीवन का हिस्सा रही हैं। मैंने अपनी जिंदगी में कठिनाईयों को कभी भी नकारात्मक रूप में नहीं लिया। मेरी कठिनाईयों ही मेरी शक्ति बनी हैं। मैं जीवन में आने वाली कठिनाईयों को सहर्ष स्वीकार करती हूं और पूरी सकारात्मकता के साथ उनसे संघर्ष करती हूं जिससे मेरी आंतरिक शक्ति और प्रबल हो जाती है।
जो बच्चों स्वार्थवश अपने माता-पिता को बेसहारा छोड़ देते हैं उनको क्या संदेश देना चाहती हैं?
मैं यही संदेश देना चाहती हूं कि आज जो भी आप अपने माता-पिता के साथ कर रहे हैं, वही आपके साथ भी कल होने वाला है। जो आप करोगे वही आपको अपने बच्चों द्वारा वापस मिलने वाला है। इस बात की बहुत तकलीफ है कि आजकल की हाई-टेक पढ़ी-लिखी पीढ़ी अपने कर्तव्यों से भाग रही है और अपने माता-पिता को दुख दे रही हैं। इस तरह के गैर जवाबदार बच्चों से कहना चाहूंगी कि माता-पिता परिवार की धरोर होते हैं, बोझ नहीं।
आप अलग-अलग उम्र और मानसिकता वाले निराश्रित माता-पिताओं के साथ रहती हैं। संस्था की संस्थापिका के रूप में जब आप राउंड पर जाती हैं तो आपके क्या इमोशन्स होते हैं?
जब भी मैं राउंड पर जाती हूं तो काफी इमोशनल हो जाती हूं। मेरा यह मानना है कि स्मित फाउन्डेशन में रहने वाले माता-पिता निराश्रित नहीं हैं। स्मित फाउंडेशन उनका अपना घर है। मैं यहां रहने वाले सदस्यों के चेहरों पर मुस्कान देखकर बहुत खुश हो जाती हूं और उनके दुख में बहुत दुखी हो जाती हूं। उनकी तकलीफें दूर कर सकूं यही मेरा प्रयास रहता है। मैं मदर टेरेसा के आश्रम में रही हूं। वहां मैंने काफी अनुशासन सीखा है। स्मित फाउन्डेशन में भी मैंने सदस्यों के लिए अनुशासन और दिनचर्या निश्चित की है। सभी सदस्य उसका पालन करते हैं क्योंकि जीवन में अनुशासन होना बेहद जरूरी है। हमारे सदस्यों में खुशियां बांटने से ज्यादा मैं खुद उनकी खुशियों को जी रही हूं। मैंने अपने जीवन में माता-पिता के प्यार और साथ की बहुत कमी महसूस की है। माता-पिता के प्यार की कमी स्मित फाउंडेशन ने पूरी की है क्योंकि मेरे एक नहीं कई माता-पिता हैं। मेरी कोशिश रहती है कि अलग-अलग उम्र के सदस्यों की मानसिकता को गहराई से समझूं और उनके सकारात्मक बदलाव ला सकूं। यह भी एक सत्य है कि माता-पिता अपने ही बच्चों द्वारा दी तकलीफ और अपमान को भुला नहीं पाते।
वृद्धाश्रम को संचालित करने के लिए काफी पैसों की जरूरत होती है। स्मित फाउंडेशन को चलाने के लिए आपको आर्थिक सायता कहां से मिलती है। राज्य शासन से आपकी क्या अपेक्षाएं हैं?
स्मित फाउंडेशन को चलाने के लिए निश्चित रूप से आर्थिक सहयोग की जरूरत होती है। सामाजिक संस्थाएं जो हमसे जुड़ी हुई हैं उनके सदस्य यहां विजिट करने आते हैं तो कुछ न कुछ सहयोग करके जाते हैं। कुछ लोग आर्थिक रूप से मदद करते हैं तो कुछ जरूरत के सामान दे जाते हैं। आर्थिक सहयोग के लिए तो मुझे निरंतर प्रयासरत रहना पड़ता है। हम आर्थिक सहायता के लिए डोनर्स से संपर्क करते हैं। आजकल ऑनलाईन सुविधाएं होने के कारण सेवाएं और सहयोग लेने के लिए संपर्क करने में आसानी हो जाती है। हमारी अपील पर जो लोग या सामाजिक संस्थाएं, वृद्धजनों की पीड़ा को समझते हैं वे सहयोग के लिए आगे आते हैं। हर वर्ष भारत के बाहर नौ देशों और भारत के विभिन्न स्कूल और कॉलेजों के बच्चे हमारे आश्रम में आते है। उनको हम वृद्धजनों की केयर करना सिखाते हैं। विभिन्न कंपनियों के सीएसआर प्रोग्राम्स करते हैं। हमारे वृद्धाश्रम में सदस्यों के जन्मदिन पर लोगों को आमंत्रित करते हैं ताकि वृद्धाश्रम में रहने वाले हमारे सदस्य जन्मदिन की खुशियां मना सकें। किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर सामाजिक रीति-रिवाज से सारे कार्य करते हैं। जो भी स्मित फाउंडेशन में विजिट करने आता है कुछ न कुछ सहयोग अवश्य करता है। मैं स्मित फाउंडेशन के लिए जो भी सेवा कर रही हूं वह लोगों से मिलने वाली सहायता की वजह से कर पा रही हूं। लोगों के सहयोग के बिना यह कार्य संभव नहीं है। महाराष्ट्र राज्य शासन से मेरी यही अपेक्षा है कि वृद्धाश्रम के लिए पांच एकड़ जमीन हमें उपलब्ध करवा दे तो हम काफी हद तक आत्मनिर्भर हो जाएंगे क्योंकि उस जगह पर हम छोटा-मोटा उद्योग और व्यवसाय शुरू कर सकते हैं जिससे दूसरों पर हमारी आर्थिक निर्भरता कम हो जाएगी। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि हम केवल शासन के सहयोग पर निर्भर नहीं होना चाहते क्योंकि बच्चे अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में इसलिए छोड़ जाएंगे कि शासन से सहयोग मिल ही रहा है तो वृद्धाश्रम में माता-पिता को छोड़ दें।यह एक कड़वी सच्चाई है कि आजकल की आधुनिक सोच के प्रभाव से माता-पिता के प्रति बच्चों की संवेदना खत्म हो चुकी हैं।
वृद्धजनों के स्वास्थ्य और खानपान का ध्यान रखना भी आपके लिए बड़ी चुनौती होती होगी। सदस्यों की सेहत और खानपान को आप कैसे मैनेज करती हैं?
वृद्धजनों की सेहत और खानपान को लेकर मैं काफी सजग रहती हूं। सभी की डाइट और जरूरत अलग-अलग होती है। मेरी कोशिश रहती है सुपाच्य और हल्का भोजन सभी को दिया जाए। सप्ताह में कभी एक बार स्पाईसी फूड भी बना लेते हैं। समय-समय पर कई लोग आश्रम के लिए खाना भी डोनेट करते हैं। जो सदस्य ठीक से नहीं खा पाते उनके लिए लिक्विड डाइट और अलग-अलग तरह के सूप देते हैं। हम अपने आश्रम में इन सदस्यों की सेवा के लिए रहना, खाना, स्वास्थ्य, लॉड्री, इंटरटेनमेंट, क्लीनिंग, वाशिंग औार मेडिकेशन की सुविधाएं देते है। आर्ट ऑफ लिविंग, योगा, जुम्बा, भजन-कीर्तन बहुत सारी गतिविधियां करवाते हैं ताकि ये अपना जीवन हर तरीके से जी सकें और निरल, नकारात्मकता से दूर रहें। आश्रम में हीलिंग भी होती है। हीलिंग एक्सपर्ट या कहें खेलों और अन्य माध्यम से वृद्धों की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं। अलग-अलग कम्युनिटी द्वारा हर महीने एक मेडिकल कैम्प लगाए जाते हैं जिनमें विभिन्न बीमारियों से संबंधित सदस्यों का परीक्षण करके दवाइयां दी जाती हैं। कई हास्पिटल्स और नर्सिंग कॉलेजों का भी हमें सहयोग मिलता है। बुजुर्गों की सेवा के लिए हमारे पास ट्रेन्ड स्टाफ हैं जो आश्रम में रहने वाले वृद्धजनों की स्वास्थ्य की जरूरतों का पूरा ध्यान रखते हैं।
विगत दिनों आपको और आश्रम में रहने वाले कई माता-पिताओं को केबीसी में आमंत्रित किया गया था। यह आपके जीवन का एक यादगार पल रहा होगा। महानायक अमिताभ बच्चन, सोनू निगम और श्रेया घोषाल जैसी प्रसिद्ध हस्तियों से मिलकर आपका कैसा अनुभव रहा?
केबीसी में अपने आश्रम के सदस्यों के साथ जाना मेरे जीवन का एक अविस्मरणीय पल है। इस पल को मैं कई बार जीती हूं और प्रफुल्लित होती हूं। जब मुझे एक दिन केबीसी टीम को फोन आया कि आपको केबीसी में आना है सोनू निगम और श्रेया घोषाल आपके आश्रम को आर्थिक सहयोग देने के लिए खेलेंगे। मेरे लिए इस बात पर विश्वनास करना मुश्किल हो रहा था। यह भी संशय था कि सच में केबीसी टीम सम्पर्क कर रही है या मामला कुछ और है। लेकिन जब केबीसी की टीम स्मित फाउंडेशन में आई और हमारे बुुजर्गों के साथ शूटिंग की, यकीन हो गया कि सच में केबीसी का ही आमंत्रण है। महानायक अमिताभ बच्चन, श्रेया घोषाल और सोनू निगम से मिलकर मैं इतनी भावुक हो गई कि मेरी मेरी आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे। यह मेरे कई माता-पिताओं का आशीर्वाद ही था जीवन में यह अनमोल पल आया। केबीसी टीम ने हमारा पूरा ख्याल रखा, आश्रम से ले जाने और कार्यक्रम के बाद आश्रम में छोड़ने तक सारी सुविधाएं उन्होंने उपलब्ध करवाई। मैं केबीसी टीम, अमिताभ बच्चन, श्रेया घोषाल और सोनू निगम की आजीवन आभारी रहूंगी कि जो भी राशि उन्होंने अर्जित करके स्मित फाउंडेशन को दी है उससे हम आश्रम के लिए बहुत कुछ कर पाएंगे।
स्मित फाउंडेशन को अच्छे से संचालित करने के लिए आप स्वयं को एर्नजेटिक कैसे रख पाती हैं?
मैं अपने जीवन को एर्नजेटिक रहने के लिए अपनी दिनचर्या व्यवस्थित रखती हूं। मुझे हर काम में अनुशासन पसंद है इसलिए अपने जीवन को भी अनुशासित रखती हूं। सुबह तीन बजे से मेरी दिनचर्या शुरू होती है। तीन से पांच बजे तक मेरा मेडीटेशन रहता है। पांच से सात बजे तक मैं अध्ययन करती हूं। मुझे पढ़ने का काफी शौक है, खूब पढ़ती भी हूं। मेरे साथ जो मेरे माता-पिता रहते हैं उनके लिए भी मैंने एक सिस्टम बनाया है जिसे सब फॉलो करते हैं। जिस तरह से मैं एर्नजेटिक रहती हूं वैसे ही आश्रम के सारे सदस्यों को एर्नजेटिक रखने की कोशिश करती हूं।
कॉरपोरेट इनसाइट ज़रिए लोगों से क्या अपील करना चाहेंगी?
आपके प्लेटफॉर्म के ज़रिए मैं कहना चाहूंगी कि बुजुर्गो की सेवा और उनका आशीर्वाद अनमोल होता है। आइए हमारे साथ जुड़िए,हमारे मिशन का एक हिस्सा बनिए।