कला और नृत्य का अप्रतिम संगम

मंचीय प्रदर्शन में ऊर्जावान होना ही पड़ता है, हमारे पास रीटेक नहीं होता
माया कुलश्रेष्ठ
कत्थक आर्टिस्ट
संस्थापिका –
अंजना वेलफेयर सोसायटी
नोएडा
राष्ट्रीय पंडित बिरजू महाराज अवॉर्ड से सम्मानित (कथक)
कत्थक नृत्य सीखने के प्रति आपकी रूचि कैसे हुई। यह आपको विरासत में मिला या किसी से प्रेरणा मिली?
माता-पिता की मेहनत और विश्वास के कारण जब मैं 3 साल की थी तो उनको यह विश्वास था कि भारतीय कला मेरे अंदर एक अच्छे जीवन जीने की ऊर्जा को संचालित करेगी। कोई भी नहीं जानता था कि भविष्य में मैं अपने जीवन को इसके साथ जोड़कर नेम फेम मनी जैसा कुछ अर्जित कर सकती हूं। वे निस्वार्थ भाव से मुझे सिखा रहे थे।
कितने वर्ष की उम्र में आपने पहली मंचीय प्रस्तुति दी थी। कैसी यादें हैं आपके अंतरमन में?
शायद मैं क्लास 3 में थी तब मैंने अपनी प्रथम प्रस्तुति दी थी, तो 7 से 8 साल की उम्र रही होगी मेरी। मेरे लिए वह अविसमरणीय पल था।
नृत्य कला के क्षेत्र में आपकी शैक्षणिक उपलब्धियों के बारे में जानना चाहेंगे?
मैंने कथक में खैरागढ़ यूनिवर्सिटी से विद किया और राजा मानसिंह तोमर से अपना एमए किया साथ ही साथ मैं कुछ कुछ रिसर्च करती रहती हूं क्योंकि मुझे लिखने का भी शौक है। मैं रिसर्च को कुछ न्यूजपेपर्स और मैग्जीन के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करती हूं।
कत्थक नृत्य सीखने के लिए किन गुरुओं का आपको सानिध्य और आशिर्वाद मिला। नृत्य के प्रशिक्षण के दौरान गुरुओं द्वारा ली गई परीक्षा आपके लिए कितनी कठिन थी।
मेरी प्रथम गुरु डॉक्टर अंजली बाबर रही जो कि पुणे की थी, उसके बाद मैंने खैरागढ़ यूनिवर्सिटी और राजा मानसिंह तोमर से अपनी शिक्षा ली। दिल्ली में कलाश्रम में मैनें सिख मैं अपने आप को भाग्यशाली मानती हूं कि मुझे कई ऐसे गुरुओं का भी मार्गदर्शन मिला जो की कथक में अपना उच्च स्थान रखते हैं।
ऐसी मान्यता है कि नृत्य के क्षेत्र में जब कोई आर्टिस्ट अपनी प्रस्तुति में पूरी एकाग्रता से डूब जाता है तो वह ईश्वर से आत्मसात हो जाता है। आप जब मंच पर सजीव प्रस्तुति दे रही होती हैं तो क्याआपको भी अपने आराध्य श्री कृष्ण के अंग संग होने का एहसास होता है?
हर मंच जीवन का एक पाठ सीखने जैसा है क्योंकि जरूरी नहीं है की हर शो बहुत अच्छा जाए और उसका नाम हो। यह हर दिन जीने वाला पल है जिसमें कई बार ऐसा भी होता है कि आप बहुत मेहनत करके मंच पर गए हैं पर कहीं ना कहीं वह चीज सही रूप नहीं ले पाती। कई बार ऐसा भी होता है कि जब आपने बहुत कोशिश नहीं की और उसके बाद भी वह एक बहुत सफल मंच प्रदर्शन रहे। यह पूरी तरह से ईश्वर दर्शन और उस स्थान की ओर पर भी निर्भर करता है। पर एक बात कही जाती है कि शो मस्ट गो ऑन तो कुछ भी हो आपको परफॉर्म करना है और अपना हंड्रेड परसेंट देना है क्योंकि मैं भाव को अत्यधिक अपने करीब मानती हूं तो जब तक मैं ही महसूस नहीं करुंगी कि मेरे आराध्य मेरे श्री कृष्णा मेरे साथ में नृत्य कर रहे हैं मुझे देख रहे हैं तब तक मैं दर्शकों को वह रस निष्पत्ति करा ही नहीं सकती।
अंजना वेलफेयर सोसायटी की संस्थापिका के रूप में आपकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राथमिकताएं क्या हैं। किन कार्यों पर सोसायटी का फोकस रहता है?
12 साल से कोशिश है कि समाज के उस वर्ग के लिए काम किया जाए जिसे जरूरत है। जरूरत है, शिक्षा की, कला की, मंच की विभिन्न शहरों में कला महोत्सव का आयोजन हम करते है।
मंच पर प्रस्तुति के दौरान विभिन्न मुद्राओं में बेहद ऊर्जावान रहती हैं। इतनी ऊर्जा आपने कहां से आती है?
मंचीय प्रदर्शन में ऊर्जावान होना ही पड़ता है। हमारे पास रीटेक नहीं होता हम कुछ ठीक नहीं कर सकते जो हो गया वही हमारा है, भारतीय कला का मंच प्रदर्शन एक जिम्मेदारी है। कोशिश होती है कि हम गलती न करे। जो हो सकता है एक कलाकार को फिट और अच्छा दिखना भी जरूरी है ,सभी गुरु लोग सात्विक जीवन और सात्विक आहार की बात करते है वहीं तरीका है।
“सुरताल” की विशेषताओं और उपलब्धियों के बारे में जानना चाहेंगे?
12 साल से ये मुहिम चल रही की नए कलाकारो और गुरु जन एक मंच पर एक साथ आए युवा कलाकार सही मार्गदर्शन पा सकें। नई प्रतिभाओं के लिए सुरताल एक बड़ा मंच है।