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दर्शक रियलिस्टिक फिल्में देखना चाहते हैं : सतीश जैन

‘मोर छइयां भुइयां-2’ दर्शकों के लिए एक बड़ा आकर्षण होगी

निर्माता-निर्देशक-लेखक सतीश जैन से गुरबीर सिंह चावला की विशेष बातचीत

सतीश जैन छत्तीसगढ़ी सिनेमा इंडस्ट्री का एक बड़ा नाम है। उनके निर्देशन में बनी फिल्में बेहद सफल रही हैं वह अपने आप में एक इंस्टीट्यूशन है। उनकी नवीनतम प्रदर्शित फिल्म ‘ले सुरु हो गे मया के कहानी’ सुपरहिट हुई है। लेखक के रूप में बॉलीवुड में काम करने का उनके पास लंबा अनुभव रहा है और छत्तीसगढ़ी सिनेमा में निर्माता निर्देशक और लेखक के रूप में उनका नाम शिखर पर है।

 

मोर छाइयां भुइयां‘’ से लेकर ‘ले सुरु हो गे मया के कहानी’ तक आपके सफर के बारे में जानना चाहेंगे, क्या अनुभव आपके रहे और सफलता का यह सफर आपके कैरियर के लिए क्या मायने रखता है?

 

‘मोर छइयां भुइयां’ से लेकर ‘ले सुरु हो गए मया’ के कहानी तक का मेरा सफर आसान नहीं रहा। मेरी हर फिल्म मेरे कैरियर के लिए एक पड़ाव रही है और निरंतर कुछ नया करने का मैंनें प्रयास किया। कभी भी सफलता की राह आसान नहीं होती। मैं इस सफर को अपने कैरियर का एक सुनहरा दौर मानता हूं जिसमें सफलता भी रही और असफलता भी। दोनों को मैंने स्वीकार किया, क्योंकि असफलता का यह मायने नहीं होता कि आप रुक जाएं। असफलता हमेशा कुछ नया करने के लिए प्रेरित करती है। ‘मोर छइयां भुइयां’ फिल्म बनाने से पहले मैं मुंबई में फिल्मों के लिए पटकथा लेखन का कार्य कर रहा था। ‘हद कर दी आपने’ मेरी लिखी आखिरी हिन्दी फिल्म थी। मैं शुरु से फिल्म निर्देशक बनना चाहता qथा। मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री में यह धारणा थी कि जो लेखक है वह अच्छा डायरेक्टर नहीं बन सकता। मैंने यह निश्चय किया कि छत्तीसगढ़ी फिल्म का निर्माण करना है जिसमें एक निर्देशक के रूप में मैं स्वयं को स्थापित कर सकूं। इस निश्चय को साकार करना मेरे लिए बहुत बड़ा चैलेंज था। आर्थिक दिक्कतों के साथ-साथ प्रादेशिक फिल्म निर्माण के लिए उस दौरान परिस्थितियां विपरीत थी। ‘मोर छइयां भुइयां’ पहली रंगीन छत्तीसगढ़ी फिल्म थी जिसने इतिहास बना दिया। ‘मोर छइयां भुइयां’ के बाद मेरी फिल्में आई ‘झन भूलो मां बाप ला’, ‘मया’ (निर्देशन)। ‘मया’ का संगीत बहुत ही सुमधुर था और बहुत पॉपुलर हुआ। ‘मया’ के बाद मेरी एक और सफल फिल्म आई ‘टूरा रिक्शावाला’। इस कड़ी में अगली फिल्म ‘लैला टिप टॉप छैला अंगूठा छाप’ फिल्म को भी दर्शकों ने बेहद पसंद किया। मैंने सात भोजपुरी फिल्मों का निर्देशन किया है। जिनमें पांच फिल्में सपुरहिट रही। दोनों ही फिल्म सुपरहिट रहीं। भोजपुरी फिल्मों के बाद वापस मैंने एक छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाई जिसका नाम था ‘हंस झन पगली फंस जाबे’ मेरी यह फिल्म व्यावसायिक रूप से सबसे बड़ी और कीर्तिमान बनाने वाली फिल्म है। इसके बाद मेरी एक और फिल्म आई ‘चल हट कोनो देख लिही’ इस फिल्म को दर्शकों ने पसंद तो किया लेकिन व्यावसायिक रूप से सफल नहीं हो पाई। इस फिल्म की असफलता के बाद निर्माता छोटेलाल साहू की फिल्म ‘ले सुरु हो गे मया के कहानी’ का निर्देशन किया। यह फिल्म भी सुपरहिट हो गई। मेरा हमेशा यह प्रयास रहता है कि अपनी हर फिल्म में दशकों के लिए कुछ नया हो।

मोर छइयां भुइयां’ के दिनों के स्ट्रगल और आज के दौर के स्ट्रगल में आप क्या अंतर मानते हैं?

 

फिल्म इंडस्ट्री में ‘स्ट्रगल’ एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। स्ट्रगल कभी खत्म नहीं होता, परिस्थितियों के हिसाब से ‘स्ट्रगल’ का स्वरूप बदलते रहता है। ‘मोर छइयां भुइयां’ के दौर में भी ‘स्ट्रगल’ था और आज भी है। ‘मोर छइयां भुइयां’ के दौरान सबसे बड़ा ‘स्ट्रगल’ पूंजी का था। फिल्म तो बनानी थी पर पैसों का बड़ा संकट था। आज फिल्म निर्माण के लिए आधुनिक कैमरे और नई तकनीकें आ गई है।

विगत कुछ वर्षों में छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री में क्या बदलाव आप देख रहे हैं?

 

विगत कुछ वर्षों में हमारी इंडस्ट्री में काफी बदलाव आए हैं। इंडस्ट्री के निर्माता-निर्देशक-कलाकार अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए तत्पर हैं। नए-नए प्रयोग भी हो रहे हैं। हमारी इंडस्ट्री में केवल कमर्शियल फिल्में ही नही बन रही बल्कि कलात्मक फिल्मों पर भी काम हो रहा है। इसका एक उदाहरण निर्माता-निर्देशक मनोज वर्मा की फिल्म ‘भूलन द मेज’ है। यह फिल्म लीक से हटकर बनाई गई और बेहद सफल हुई। इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। ‘ले चलहु अपन दुआरी’ फिल्म भी कुछ हटकर बनी है। ‘नवा बिहान’ का सब्जेक्ट भी अलग था। हमारी इंडस्ट्री में ऐसे लोग भी आ रहे हैं जो नया प्रयोग कर रहे हैं। इससे छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री में फिल्मों के सब्जेक्ट को लेकर विविधता भी दिखाई दे रही है। ऐसे लोग आ रहे हैं जिन्हें सिनेमा की समझ है और कुछ नया करना चाहते हैं।

छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री में फिल्म निर्माण की संख्या तो काफी बढ़ी है पर उसकी तुलना सफल फिल्मों की संख्या में बहुत ही कम है। इसका सबसे बड़ा कारण आप क्या मानते हैं?

 

किसी भी इंडस्ट्री को तभी सफल माना जाता है जब वह व्यावसायिक रूप से सफल हो। हमारी फिल्में की एक सीमा में बंधी हुई है। हम सिर्फ फैमिली ड्रामा बना सकते हैं। यहां हम थ्रिलर, हॉरर और एक्शन फिल्में नहीं बना सकते। फिल्मों की असफलता का सबसे बड़ा कारण स्क्रिप्ट पर ठीक से काम न होना है। स्क्रिप्ट में कुछ नयापन हो और उस पर गहराई से काम किया जाए तो फिल्में निश्चित रूप से सफल होंगी।

छत्तीसगढ़ी फिल्मों के पात्रों में सहजता की कमी होती है कैरेक्टर्स बहुत ओवर एक्ट करते हैं आपका क्या कहना है?

अब दौर बदल रहा है दर्शक काफी परिपक्व हो गए हैं। उन्हें रियलिस्टिक फिल्में देखना अच्छा लगता है। दर्शक अब लाउड और ओवर ड्रैमेटिक फिल्मों को पसंद नहीं करते उदाहरण के तौर पर ‘ले सुरु हो गे मया के कहानी’, ‘हंस झन पगली’, ‘भूलन द मेज’ रियलिस्टिक फिल्में हैं जिन्हें दर्शकों ने बेहद पसंद किया। निर्देशकों को यह बात समझनी पड़ेगी कि बदलते दौर में दर्शकों की पसंद का ध्यान रखना जरूरी है।

आगामी फिल्म आपकी ‘मोर छइयां भुइयां-2’ के क्या आकर्षण होंगे?

‘मोर छइयां भुइयां-2’ के दर्शकों को ‘मोर छइयां भुइयां’ का फ्लेवर दिखेगा। नए रूप में नए रंग में नए ट्रीटमेंट के साथ। जिस प्रकार से ‘नदिया के पार’ को ‘हम आपके हैं कौन’ बनाया गया था उसी तरह ‘मोर छइयां भुइयां-2’ को हमने बनाया है जो दर्शकों के लिए एक बड़ा आकर्षण होगी। इसके प्रमुख किरदारों में मन कुरैशी, दीपक साहू, एल्सा घोष और दीक्षा जायसवाल हैं। फिल्म के सभी कलाकारों ने कमाल का अभिनय किया है। फिल्म का संगीत भी बेहद कर्णप्रिय है।

 

अपनी अब तक की सफलता का श्रेय आप किसे देना चाहेंगे?

माता-पिता का आशीर्वाद, मेरा जुनून, मेरे परिवार का सहयोग और दर्शकों का मुझ पर विश्वास और प्यार। इन सबको मेरी सफलता समर्पित है।

आपकी बेटी रुनझुन भी काफी टैलेंटेड है आपके साथ काम भी कर रही है उससे कैसी अपेक्षाएं हैं आपकी?

 

रुनझुन की फिल्म मेकिंग में काफी गहरी रुचि है। सिनेमा पूरी तरह से भावनाओं का खेल है। रुनझुन बेहद भावुक है, भावनाओं को गहराई से समझती है और यही समझ उसकी खूबी है। भावनाओं को समझकर उसे किरदारों के माध्यम से पर्दे पर उतारने की खूबी मुझे रुनझुन में दिखाई देती है। भावुक होना प्रैक्टिकल जीवन में कई बार दुखी भी करता है लेकिन एक फिल्मकार की दृष्टि से देखे तो विभिन्न किरदारों की भावनाओं की समझ होनी चाहिए। रुनझुन को मैंने अपेक्षाओं के दायरे से मुक्त रखा है। वह अपना कार्य करने के लिए स्वतंत्र है। एक फिल्मकार के रूप में वह सफल हो, यही मेरी शुभकामनाएं हैं।

 

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