कवर स्टोरी

ज़रूरतमंद लोगों की सेवा है फ़र्ज़ मेरा:सोनू सूद

 

अपने आप को मैं बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि संकट के समय जरूरतमन्द लोगों की मदद कर सका।

सोनू सूद से गुरबीर सिंघ चावला की विशेष बातचीत

सोनू सूद का नाम आज उनके परोपकारी कार्यों के कारण आसमान की ऊंचाईयों को स्पर्श कर रहा है। उनकी दरियादिली और जनहित कार्यों के कारण वे लाखों लोगों के चहेते हैं। जरूरतमंद लोगों के लिए वे मसीहा हैं। सोनू सूद के चमत्कारिक व्यक्तित्व से आज सभी प्रभावित हैं और इंसानियत के लिए किए जा रहे उनके सतत् प्रयासों की सराहना राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही है। सोनू सूद ने अपनी कला और व्यवसाय से आज तक जो भी कमाया है वे पीडि़तों के दु:ख दर्द को दूर करने में खर्च कर रहे हैं बिना इस बात की परवाह किए कि जो भी राशि वे जरूरतमंद लोगों के लिए खर्च कर रहे हैं वह राशि कभी वापस नहीं होगी। लोगों से मिल रही दुआएं ही उनकी सबसे बड़ी पूंजी है।

पंजाब से मुंबई तक का सफर सोनू सूद के लिए कोई आसान नहीं था। कई पड़ाव बदले, शहर बदले, लोग बदले लेकिन सोनू सूद नहीं बदले। उन्होंने अपनी इच्छाशक्ति से हर चुनौती को एक नए अवसर में बदला। आज वे सफलता के शिखर पर हैं। उन्हें कभी अपनी सफलता का “ईगो” नहीं हुआ।

अपनी एक्टिंग के व्यस्ततम दौर में आपको कब यह एहसास हुआ कि ज़रूरतमन्द लोगों के लिए समाज सेवा के लिए भी काम करना है?

अपने आप को मैं बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि मैं संकट के समय ज़रूरतमंद लोगों की मदद कर सका। मेरी माँ ने मुझे हमेशा से ही मानवता की सेवा की सीख दी है और प्रेरणा दी कि ज़रूरतमंद लोगों की सेवा ही सच्ची सेवा है। देश में कोविड महामारी के दौर में जब मैंने अपने लाखों मजदूर भाई बहनों को उनके घर तक बहुत ज्यादा कठिनाइयों से जूझते हुए देखा तो उनकी तकलीफ़ उनका दुःख उनका दर्द मुझे अपना दुःख दर्द लगा। उनकी तकलीफों को दूर करने और उनको घरों तक सकुशल पहुँचाने के लिए मैंने अपने सहयोगियों के साथ मिल कर दिन रात एक कर के इस मिशन मे जुट गया और इसमे बडी कामयाबी भी मिली। मैं खुशनसीब हूँ जो भगवान ने इस सेवा के लिए मुझे चुना और मैं मजदूर भाई बहनों के काम आ सका।

ज़रूरतमन्द लोगों की सेवा करने का यह ज़ज़्बा आपमे कहाँ से आया?

पंजाब में मेरे पापा की एक कपड़े की दुकान हुआ करती थी। कई बार लोगों के पास कपड़े लेने के लिए पैसे नही होते थे। उनकी मजबूरी को देखते हुए मेरे पापा उनको बिना पैसे लिए कपड़े दे दिया करते थे। मेरी माँ एक प्रोफेसर थीं और ऐसे जितने भी बच्चे थे जो किताब नहीं खरीद सकते थे उन्हें मेरी माँ खुद क़िताबें खरीद कर देती थी। लोगों की सेवा करने का ज़ज्बा मुझे मेरे माता पिता के दिए हुए संस्कारो और सीख से ही मिला है।

 

कोरोना काल मे देश के सेवा करने में आपका योगदान अतुलनीय है। उस दौरान सबसे बडी चनौती आप के लिए क्या थी?

 

कोविड महामारी एक ऐसा दौर था जिसकी किसी ने कल्पना भी नही की थी। यह एक ऐसी समस्या थी जिसका किसी ने पहले कभी सामना नहीं किया था। ऐसे कठिन समय में लोग अपने घर वालों से मिलना चाहते थे। इतनी बड़ी संख्या में उनके लिए बस, ट्रैन या फ्लाइट्स का इंतजाम करना और उन सबका RTPCR टेस्ट करवाना सबसे बड़ी चुनौती थी।

आपके द्वारा मानवता की सेवा के लिए किये गए अनगिनत कार्यों से प्रभावित हो कर आपके प्रशंसक आपका मंदिर भी बनाते हैं। इसे आप किस रूप में स्वीकारते हैं। ऐसे प्रशंसकों से आप कहा कहना चाहते हैं?

मैं दिल से उन सब का आभार व्यक्त करता हूँ। मैं कभी भी लोगों की सेवा का काम इसलिए नही करता कि लोग मुझे पूजे। पूजा तो सिर्फ भगवान की ही की जाती है। ज़रूरतमंद लोगो की सेवा अपना फ़र्ज़ समझ कर करता हूँ। अपने प्रशंसकों से मैं यही कहना चाहता हूँ कि जब भी आप किसी ज़रूरतमंद को देखें तो आप उसकी मदद करने की कोशिश जरूर करें, क्या पता आपके हाथों की लकीरों में किसी का जीवन बदलना लिखा हो।

 

सूद चैरिटी फाउंडेशन द्वारा देश के विभिन्न शहरों में हॉस्पिटल बनाने की क्या कोइ योजना है,जहाँ ज़रूरतमंद लोगों के लिये रियायती दरों में इलाज़ हो सके?

 

सूद चैरिटी फाउंडेशन हमेशा ही जरूरतमंद लोगों की लिए समर्पित है। मेरा हमेशा से मानना है कि ईलाज जैसी मूलभूत सुविधाएं लोगों को जितनी कम दरों पर उपलब्ध हो सके उन्हें मिलनी चाहिए। हमें जब भी मौका मिलेगा तो हम एक ऐसा सर्वसुविधायुक्त अस्पताल अवश्य बनाएंगे जहाँ पर गरीब भाई बहन आकर अपना ईलाज करवा सकें।

 

शिक्षा से वंचित लोगों के लिए सूद चैरिटी फाउंडेशन द्वारा सुविधाएं देने के लिए की पहल के बारे में जानना चाहेंगे?

 

शिक्षा हम सबके जीवन की प्राथमिक मूलभूत ज़रूरत है, पैसों की कमी की वजह से किसी का भविष्य नहीं खराब होना चाहिए। इसलिए हमने प्रोफेसर सरोज सूद स्कॉलरशिप लांच की है जिसमें हम लीगल, सीए, इंजीनियरिंग और आईएएस जैसी पढ़ाई के लिए मेघावी छात्रों को स्कॉलरशिप देते हैं।

 

आप अपनी एक नई फिल्म “फतेह” दर्शकों के लिये ले कर आ रहे हैं। फ़िल्म के शीर्षक “फतेह” को आप किस तरह परिभाषित (define) करना चाहेंगे?

 

अपने जीवन में हम नित्य नई परेशानियों से जूझते हैं, हर रोज़ हम उन परेशानियों से लड़ते हैं, और जब हम अपनी परेशानियों से डरने की जगह उनसे डटकर लड़ना शुरू कर देते तब हम उन परेशानियों पर फ़तह पा लेते हैं, मेरी यह फ़िल्म भी ऐसी ही एक परेशानी से जुड़ी हैं जिससे हम सबको साथ मिलकर फतेह करना है।

 

आप अपनी अब तक की सफ़लताओं का श्रेय किसे देना चाहेंगे?

 

◆अपनी सफलता का श्रेय मैं अपने माता पिता, परिवार और भगवान को देना चाहूँगा, क्योकी इनके आशीर्वाद के बिना यहाँ तक पहुँचना संभव नहीं था, इसके अलावा मैं अपनी सफलता का श्रेय उन लाखों लोगों को भी देना चाहता हूँ जिन्होंने मेरे लिए दुआएं की क्योंकि यहाँ तक का सफ़र बिना उनकी दुआओं के बिना संभव नहीं था।

 

मैं अपने आप को खुशकिस्मत मानता हूँ कि मैं किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट ला पाया, और इसके लिए अपने माता पिता और भगवान का धन्यवाद करता हूँ कि उन्होंने मुझे इस काबिल बनाया। जरूरतमंद लोगों की सेवा फ़र्ज़ है मेरा और अपने इस फ़र्ज़ मैं हमेशा निभाता रहूंगा।

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